Monday, July 20, 2015

महिलाओ के गुप्त रोगो का उप्चार

अनियमित मासिक धर्म 
मासिक धर्म  28 दिन की अवधि में न हो, बहुत थोड़ी मात्रा में हो, कष्ट के साथ हो तो यह अनियमित मासिक धर्म कहलाता है। उपरोक्त वर्णित तकलीफ में यह इलाज करें-
अनियमित मासिक धर्म रोग
किशोर अवस्था को पार करके नवयौवन में प्रवेश करने वाली नवयुवतियों, नवविवाहिताओं व छोटे शिशुओं की माताओं को भी अनियमित मासिक धर्म की शिकायत रहती है। जो अति कषट के साथ मासिक धर्म होता है  अगर यह अनिय्मित हो तो यह माह में कभी दो बार या एक-डेढ़ माह में एक बार तक हो सकता है, यानी नियमित नहीं रहता, कभी ज्यादा गरम वस्तु खा ली कि मासिक शुरू हो जाता है।
यह निर्धारित 28 दिन की अवधि में न हो, या बहुत कम मात्रा में, या अधिक मात्रा मे हो, कष्ट के साथ हो तो यह अनियमित मासिक धर्म कहलाता है। उपरोक्त वर्णित तकलीफ में यह इलाज करें-
(1) दोनों वक्त आधा कप पानी में अशोकारिष्ट और दशमूलारिष्ट की 2-2 चम्मच दवा डालकर लगातार दो माह या तीन माह तक पीना चाहिए। मासिक धर्म शुरू होने से 2-3 दिन पहले से सुबह दशमूल का काड़ा बनाकर खाली पेट पीना शुरू कर, मासिक स्राव शुरू हो तब तक सेवन करना चाहिए।
(2) श्वेत प्रदर और अनियमित मासिक धर्म की चिकित्सा 4-5 माह तक इस प्रकार करें- भोजन के बाद आधा कप पानी में दशमूलारिष्ट, अशोकारिष्ट और टॉनिक एफ-22 तीनों दवा को 2-2 बड़े चम्मच डालकर दोनों वक्त पीना चाहिए।
(3) 20 ग्राम गन्ने का सिरका रोज रात को सोने से पहले पीने से खुलकर व साफ माहवारी आती है।
(4) अमलतास का गूदा 4 ग्राम, नीम की छाल तथा सोंठ 3-3 ग्राम लेकर कुचल लें। 250 ग्राम पानी में 10 ग्राम गुड़ सहित तीनों सामग्री डाल दें व पानी चौथाई रहने तक उबालें। मासिक की तारीख शुरू होते ही इस काढ़े को सिर्फ एक बार पिएँ । इससे मासिक खुलकर आएगा तथा पीड़ा यदि हो तो दूर होगी।
(5) आयुर्वेदिक दुकान पर मिलने वाली चन्द्रप्रभा वटी की 5-5 गोलियाँ सुबह-शाम कुमारी आसव के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से शरीर में लोहे की कमी दूर होती है, व मासिक नियमित होता है।
दोनों वक्त शौच के लिए अवश्य जाना चाहिए। तले हुए तेज मिर्च-मसालेदार, उष्ण प्रकृति के और खट्टे पदार्थ तथा खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए।
श्वेत प्रदर/ल्यूकोरिया रोग 
श्वेत प्रदर/ल्यूकोरिया भारतीय महिलाओं में यह आम समस्या प्रायः बिना चिकित्सा के ही रह जाती है। सबसे बुरी बात यह है कि इसे महिलाएँ अत्यंत सामान्य रूप से लेकर ध्यान नहीं देती, छुपा लेती हैं जिससे कभी-कभी गर्भाशयगत कैंसर होने की भी संभावना रहती है।प्रारंभ में ध्यान देकर चिकित्सा की जाए तो निश्चित ठीक होता है किन्तु उपेक्षा करने पर, काफी देर से चिकित्सा करने पर गंभीर या असाध्य भी हो सकता है।
अधिकांश मामलों में यह देखने में आया है कि इस बीमारी को योग्य चिकित्सक से इलाज कराने के बजाए लोग नीम हकीमों के पास जाना पसंद करते हैं।योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा गाढ़ा स्राव होना आज मध्य उम्र की महिलाओं की एक सामान्य समस्या हो गई है। सामान्य भाषा में इसे सफेद पानी जाना, श्वेत प्रदर या ल्यूकोरिया कहा जाता है। आयुर्वेद में काश्यप संहिता में वर्णित कौमार भृत्य (बालरोग) के अंतर्गत बीस प्रकार की योनिगत व्याधियों का वर्णन है जिसमें से एक ‘पिच्छिला योनि’ के लक्षण पूर्णतः ल्यूकोरिया से मिलते हैं। प्रदर या योनिगत स्राव दो प्रकार का है। एक सफेद पानी जाना दूसरा योनि मार्ग से माहवारी के रूप में अत्यधिक- अधिक दिनों तक (4-5 दिन से ज्यादा) या बार-बार रक्त स्राव होना रक्तप्रदर है।
श्वेत प्रदर वास्तव में एक बीमारी न होकर किसी अन्य योनिगत गर्भाशयगत व्याधि का लक्षण है या सामान्यतः प्रजनन अंगों में सूजन का बोधक है। सफेद पानी के साथ सबसे बुरी बात यह है कि इसे महिलाएँ अत्यंत सामान्य रूप से लेकर ध्यान नहीं देती छुपा लेती हैं जिससे कभी-कभी गर्भाशयगत कैंसर होने की भी संभावना रहती है।योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा गाढ़ा स्राव होना आज मध्य उम्र की महिलाओं की एक सामान्य समस्या हो गई है। सामान्य भाषा में इसे सफेद पानी जाना, श्वेत प्रदर या ल्यूकोरिया कहा जाता है। आयुर्वेद में काश्यप संहिता में बीस प्रकार की योनिगत व्याधियों का वर्णन है।
कैंसर का एक सर्व स्वीकृत कारण किसी भी अंग पर लंबे समय तक घर्षण होना है। अतः श्वेत प्रदर है तो एक सामान्य लक्षण है जिसकी ओर प्रारंभ में ध्यान देकर चिकित्सा की जाए तो निश्चित ठीक होता है किन्तु उपेक्षा करने पर, काफी देर से चिकित्सा करने पर गंभीर या असाध्य भी हो सकता है।
चिकित्सा क्या है? यदि सफेद पानी के कारणों को देखें तो इसमें महिला का शर्म के आवरण में लिपटा होकर अपनी तकलीफ को अपने पति से भी छुपाना है। श्वेत प्रदर या सफेद पानी का मुख्य कारण अस्वच्छता है। जिसे निम्नानुसार दूर किया जा सकता है।
* योनि स्थल की पर्याप्त सफाई रखना।
* बालों को साफ करते रहना : चूँकि योनि- मल एवं मूत्र मार्ग पास-पास होते हैं, मल एवं मूत्र में विभिन्न कीटाणु होते हैं, बालों की उपस्थिति में कीटाणु बालों के मूल में स्थित होकर योनि मार्ग में प्रविष्ट होकर अनेक योनि गर्भाशयगत व्याधियों को उत्पन्न कर सकते हैं। बालों की जड़ों पर ठीक प्रकार से सफाई नहीं हो पाती अतः समय-समय पर बालों को हेयर रिमूवर से साफ करना, ब्लेड से साफ करना या कैंची से काटना चाहिए।
* प्रत्येक बार मल मूत्र त्याग के पश्चात अच्छी तरह से संपूर्ण अंग को साबून से धोना।
* मैथुन के पश्चात अवश्य ही साबुन से सफाई करना चाहिए।
उपरोक्त सामान्य सावधानियों से ही श्वेत प्रदर की उत्पत्ति को रोका जा सकता है। कारणों के दृष्टिकोण से निम्न अत्यधिक घर्षण जन्य कारणों के प्रति भी महिलाओं को सतर्क रहना चाहिए।
* अत्यधिक मैथुन- घर्षण का प्रमुख कारण है।
* ज्यादा प्रसव होना
* बार-बार गर्भपात कराना : यह सफेद पानी का एक प्रमुख कारण है। अतः महिलाओं को अनचाहे गर्भ की स्थापना के प्रति सतर्क रहते हुए गर्भ निरोधक उपायों का प्रयोग (कंडोम, कापर टी, मुँह से खाने वाली गोलियाँ) अवश्य करना चाहिए। साथ ही एक या दो बच्चों के बाद अपना या अपने पति का नसबंदी आपरेशन कराना चाहिए।
सामान्य लक्षण
* योनि स्थल पर खुजली होना
* कमर दर्द होना
* चक्कर आना
* कमजोरी बनी रहना
चिकित्सा
* ऊपर वर्णित कारणों को दूर करना- श्रेष्ठ चिकित्सा है।
* स्फटिका या फिटकरी को तवे पर गर्म कर पीसकर रखें, इससे सुबह शाम योनि स्थल की सफाई करें। फिटकरी एक श्रेष्ठ जीवाणु नाशक सस्ती औषधि है, सर्वसुलभ है।
* मांजूफल चूर्ण 50 ग्राम तथा टंकण क्षार- 25 ग्राम लेकर- 50 मात्रा कर या 50 पुड़िया बनाकर सुबह शाम शहद के साथ चाटना।
* अशोकारिष्ट 4-4 चम्मच सुबह-शाम समान पानी से भोजन के बाद लें।
* सुपारी पाक 1-1 चम्मच-सुबह शाम दूध से सेवन करने से सफेद पानी में लाभ होता है।

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