Saturday, August 5, 2017

Simple Steps for Balanitis Treatment in hindi

कैन्डिडा

कैन्डिडा फफूंद से होने वाला संक्रमण है। इसे खमीर संक्रमण या जेनिटल कैन्डिडोसिस भी कहते हैं।
जब यीस्ट बहुत अधिक बढ़ जाता है तो आपको कैन्डिडा संक्रमण हो जाता है। आम तौर पर यह तभी होता है जब आपके शरीर की प्रणाली असंतुलित हो जाती है। और आपके शरीर में जीवाणु और यीस्ट का संतुलन बिगाड़ कर यीस्ट को बहुत अधिक बढ़ा देता है।
 यीस्ट संक्रमण के आम कारण हैं:
  • गर्भनिरोधक गोलियां या हार्मोन का सेवन करना
  • मासिक आने से पहले या गर्भावस्था के दौरान होर्मोन के स्तरों का बढ़ जाना
  • खासकर पेन्सिलीन जैसे ‘ब्राड स्पेक्ट्रम’ एंटीबायोटिक्स का सेवन करना
  • स्टीरायड दवाएं खाना
  • खून में शर्करा (ब्लड सुगर) के स्तर का बढ़ जाना
  • योनि मैथुन, खासकर ड्राई सेक्स करना
  • शुक्राणुनाशकों (स्पर्मीसाइड्स) का प्रयोग करना
  • टैम्पॉन को बहुत देर तक छोड़ देना
  • कठोर साबुनों का प्रयोग करना
  • डूश लेना

कैन्डिडा से कैसे बच सकते हैं?

 यीस्ट संक्रमण से बचने के कई तरीके हैं।
यदि आप महिला हैं:
  • योनि के भगोष्ठ के अंदरूनी और बाहरी हिस्सों को अच्छी तरह धोएं, जहां यीस्ट के पनपने की संभावना अधिक होती है।
  • शावर या स्नान करने के बाद अपने योनि के आस-पास की जगह को अच्छी तरह सुखाएं
  • कठोर साबुन, पफ्र्यूम या टाल्कम पावडर का प्रयोग न करें
  • टायलेट के प्रयोग के बाद आगे से पीछे तक (योनि से गुदा तक) अच्छी तरह सुखाएं
  • 100 प्रतिशत सूती चड्ढी पहनें
  • चड्ढी धोने के लिए गर्म पानी का प्रयोग करें और फैब्रिक साफेनर का प्रयोग न करें।
  • चुस्त स्लैक्स या निकर न पहनें
  • टैंपन की बजाय बिना सुगंध वाले सेनिटरी पैड का प्रयोग करें
  • सेनिटरी पैड या दूसरे पैड बार-बार बदलें
  • दही जैसे आहार का सेवन करें जिसमें लैक्टोबेसिलस एसिडोफिलिस नामक लाभकारी जीवाणु होते हैं।
  • ड्राई सेक्स करने से बचें
  • सेक्स करते समय पानी में घुलने वाली चिकनाइयों जैसे कि- के वाई जेली का प्रयोग करें
  • शुक्राणुनाशकों (स्पर्मीसाइड्स) का प्रयोग न करें
  • आपके साथ सेक्स करने से पहले अपने साथी को अपने लिंग और हाथों को अच्छी तरह धोने को कहें
  • कंडोम का प्रयोग करें
  • योनि में डूश न लें
  • बिना हार्मोन वाले गर्भनिरोधक उपायों, जैसे कंडोम, आईयूडी (’जो की भारत में कापर-टी या मल्टीलोड के नाम से उपलब्ध है), डायाफ्राम या योनि से बाहर वीर्यपात विधियों का प्रयोग करें। 
यदि आप पुरुष हैं:
  • 100 प्रतिशत सूती चड्ढी पहनें
  • चड्ढी धोने के लिए गर्म पानी का प्रयोग करें और फैब्रिक साफेनर का प्रयोग न करें।
  • चुस्त स्लैक्स या कच्छे न पहनें
  • सेक्स करने से पहले अपने लिंग और हाथों को अच्छी तरह धोएं
  • कंडोम का प्रयोग करें
  • कठोर साबुन, पफ्र्यूम या टाल्कम पावडर का प्रयोग न करें
  • दही जैसे आहार का सेवन करें जिसमें लैक्टोबेसिलस एसिडोफिलिस नामक अच्छे या लाभकारी जीवाणु होते हैं।
  • सेक्स करते समय पानी में घुलने वाली चिकनाइयों जैसे कि- के वाई जेली का प्रयोग करें
  • शुक्राणुनाशकों (स्पर्मीसाइड्स) का प्रयोग न करे

कैन्डिडा के लक्षण क्या हैं?

आम तौर पर कैन्डिडा- या यीस्ट से संक्रमित लोगों में कोई लक्षण नज़र नहीं आते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इनके लक्षण दिखाई पड़ने की संभावना अधिक होती है।
यदि आपको लगता है कि आप यीस्ट से संक्रमित हुए हैं तो इसकी जांच कराएं। कभी-कभार दूसरे संक्रमणों, जैसे ट्राइकोमोनियासिस के लक्षण देखकर यीस्ट संक्रमण समझ लेने की गलती हो जाती है।
डाक्टर आपकी योनि के अंदर की जांच करने के लिए स्पेकुलम (एक तरह का दर्पण) का प्रयोग कर सकते हैं।
महिलाओं में यीस्ट संक्रमण (इन्फेक्षन) के लक्षण हैं:
  • भगोष्ठ और योनि के आस-पास जलन, खुजली, लालिमा और सूजन
  • योनि से गाढ़ा, दही जैसा स्राव
  • योनि की बदबू
  • पेशाब करते समय दर्द
  • सेक्स करते समय दर्द
पुरुषों में यीस्ट संक्रमण (इन्फेक्शन) के लक्षण हैं:
  • लिंग मुंड पर खुजली, लालिमा और खाल निकली हुई (स्केली) दिखना
  • लिंग मुंड की सूजन
  • लिंग की आगे की चमड़ी को पीछे खींचने में तकलीफ़
  • लिंग से सफेद स्राव
चित्रः  पुरुषों में यीस्ट संक्रमण का उदाहरण
ध्यान रहे, यदि आपको यीस्ट इन्फेक्षन हुआ हैं, तो वह दिखाए गए चित्र से बिलकुल अलग भी दिख सकता हैं! यदि आपको कोई शंका है, तो डॉक्टर के पास या क्लीनिक जाएं।
 

कैन्डिडा की जांच कैसे कराएं?

यदि आपको लगता है कि आप कैन्डिडा- यीस्ट इन्फेक्शन - से संक्रमित हैं तो आप, अपने डाक्टर के पास जाकर जांच करवा सकते हैं। आपके  डाक्टर, आपके शरीर में संक्रमित जगह की जांच करेंगे और हो सकता है कि रूई के फाहे से सैम्पल लेकर उसे कैन्डिडा का पता लगाने के लिए जांच के लिए भेजें।

कैन्डिडा से छुटकारा कैसे पाएं?

कैन्डिडा- यीस्ट इन्फेक्शन का इलाज आसानी से किया जा सकता है।
जलन, खुजली या स्राव के लक्षणों से आपको कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं होती।
इलाज के लिए आपके पास निम्नलिखित कुछ विकल्प मौजूद हैं:
1. प्राकृतिक उपचार, जैसे कि एसीडोफिलस की गोलियां
2. आम दुकानों पर मिलने वाली क्रीम या बत्तियां, जैसे कि मोनिस्टेट (माइकोनाज़ोल नाइट्रेट), जो एक दिन, तीन दिन और सात दिन के पैकेज में आती हैं।
3. डाक्टर द्वारा लिखी जाने वाली दवाएं जैसे कि फ्लूकोएनाज़ोल (डाईफ्लूकान) की एक खुराक
आपके संक्रमण की गंभीरता के अनुसार डाक्टर आपको इन तीन विकल्पों में से किसी एक विकल्प की सलाह दे  सकते हैं।
ध्यान रहे कि आम दुकानों पर मिलने वाली क्रीमों और बत्तियों में ऐसे तेल मिले हो सकते हैं जो कंडोम को नुकसान पहुंचा सकते हैं।इसलिए अपने दवा बिक्रेता या केमिस्ट से इस बारे में जानकारी ले लें कि आपकी क्रीम या बत्ती में ऐसा कोई तेल मिला हुआ तो नहीं है। यदि है, तो कंडोम के साथ उनका प्रयोग करने से बचें।

Wednesday, September 28, 2016

Science is surprised Sleep on the floor of the temple, where only are pregnant women

अब आप इसे ईश्‍वर में विश्‍वास कहें या अंधविश्‍वास पर ऐसे ही विज्ञान को हैरान करते चमत्‍कार की कहानी सुनाता है हिमाचल में स्‍थित सिमसा माता का मंदिर।
हिमाचल के सिमस गांव में एक सिमसा माता का मंदिर है जिसके फर्श पर सोने से निसंतान महिलाऐ प्रगनेंट हो जाती है। वैसे तो महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए न जाने कैसे-कैसे कष्टो से गुजरती हैं, लेकिन यहां तो सिर्फ फर्श पर सोने मात्र से संतान की प्राप्ति हो जाती है।इस मंदिर को संतान-दात्री के नाम से जाने जाता है। यहां दूर दूर से महिलाऐ इस मंदिर के फर्स पर सोने के लिए आती है। नवरात्रा में यहां सलिन्दरा उत्सव मनाया जाता है जिसका अर्थ है सपने आना, निसंतान महिलाये दिन रात इस मंदिर के फर्स पर सोती है। नवरात्रों में हिमाचल के पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ से ऐसी सैकड़ों महिलाएं इस मंदिर की ओर रूख करती हैं जिनके संतान नहीं होती है।नवरात्रों में निसंतान महिलायें मंदिर परिसर में डेरा डालती हैं और दिन रात मंदिर के फर्श पर सोती हैं ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा लेकर से मंदिर में आती हैं माता सिमसा उन्हें सपने में मानव रूप में या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान का आशीर्वाद प्रदान करती है।
लोगो का मानना है की माता सिमसा सपने में महिलाओ को फल देती है और महिलाए सपने में माता से उस फल को लेती है। इसे यह संकेत मिल जाता है की माता ने संतान का का आशिर्वाद दे दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं होता इस फल से इस बात का पता चल जाता की महिलाओं लड़का होगा की लड़की।मान्यता के अनुसार, यदि कोई महिला सपने में कोई कंद-मूल या फल प्राप्त करती है तो उस महिला को संतान का आशीर्वाद मिल जाता है। यहां तक की देवी सिमसा आने वाली संतान के लिंग-निर्धारण का भी संकेत देती है।जैसे कि, यदि किसी महिला को अमरुद का फल मिलता है तो समझ लें कि लड़का होगा। अगर किसी को सपने में भिन्डी प्राप्त होती है, तो समझें कि संतान के रूप में लड़की प्राप्त होगी। यदि किसी को निसंतान होने, धातु, लकड़ी या पत्थर की बनी कोई वस्तु प्राप्त हो तो समझा जाता है कि उसके संतान नहीं होगी। और उसके बाद भी वो महिला उस मंदिर से नहीं जाती है तो उसके शरीर में खुजली भरे लाल लाल दाग दिखने लगते है। इसलिए उसे मजबूरन वहां से जाना पड़ता है।मंदिर के पास पत्थर जो हिलता है एक उंगली से:-एक चमत्कार होता है यहां, सिमसा माता मंदिर के पास यह पत्थर बहुत प्रसिद्ध है। इस पत्थर को दोनों हाथों से हिलाना चाहो तो यह नही हिलेगा और आप अपने हाथ की सबसे छोटी ऊंगली से इस पत्थर को हिलाओगे तो यह हिल जायेगा।अब ये तो मान्यताएं हैं और मान्यतों के बारे में हम क्या कहें, हम इस बात की पुष्टि नहीं करते लेकिन जो सत्य है वो तो है ही

Now you say, trust in God, such as science or superstition tells a story about the miracle surprised Simsa Mata temple in Himachal.
Seamus village in Himachal Simsa mother sleep on the floor of the temple which is Prgnent Mahilaae Nisntan. Well, not for women on how Kshto progeny pass, but here, just sleep on the floor is only the realization of the child.
The temple is known as child-Datri. Far away from here Mahilaae fers to sleep on the temple comes. The festival is celebrated in Nvratra Slindera meaning dream come Nisntan women day and night sleeps at the temple fers. Navratra neighboring states of Himachal, Punjab, Haryana and Chandigarh, the temple sanctuary to hundreds of women whose children are not.
bless the child appeared provides.
Simsa people believe in the dream of the mother is a female fruit and that fruit takes women from the mother in the dream. This is indicative of the child's mother has given blessings. Not only that, the fruit is known to the boy's girl's women.
According to belief, if a woman in a dream, if it gets no roots or fruit of the female child is blessed. Even the determination of the sex of the child goddess Simsa incoming signals.
For example, if a woman is worth Guava will understand that boy. If someone comes in dreams okra, then the girl will understand that child. If anyone is Nisntan, metal, wood or stone get anything so that his children would not be considered. And then the girl that she is not from the temple, his body is itchy red spots start appearing. So he is forced to go from there.
Stone near the temple, which is moving from a finger -
Here is a miracle, Simsa Mata temple is very famous stone. If the stone does not have to move and shake with both hands the little finger of your hand, it will move the stone Hilaoge.
Now what shall we say about the beliefs and Manyton, but the truth is we do not confirm it is the same

Sunday, July 24, 2016

पित्त की थैली की पथरी को दूर करने के घरेलू उपचार

नाशपाती का जूस (Pear juice)- नाशपाती के आकार की पित्त की थैली को नाशपाती द्वारा ही साफ किया जाना संभव है। नाशपाती में मौजूद पैक्टिन (pectene) कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) को बनने और जमने से रोकता है। यूं भी नाशपाती गुणों की खान है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।
उपचार- एक गिलास गरम पानी में, एक गिलास नाशपाती का जूस और दो चम्मच शहद (honey) मिलाकर पीएं। इस जूस को एक दिन में तीन बार पीना चाहिए।
पुदीना (Mint)- पुदीना को पाचन के लिए सबसे अच्छी घरेलू औषधि (home remedy) माना जाता है जो पित्त वाहिका तथा पाचन से संबंधित अन्य रसों को बढ़ाता है। पुदीना में तारपीन (terpenes) भी होता है जो कि पथरी को गलाने में सहायक माना जाता है। पुदीने की पत्तियों से बनी चाय गॉल ब्लेडर स्टोन से राहत दे सकती है।
उपचार- पानी को गरम करें, इसमें ताजी या सूखी पुदीने के पत्तियों को उबालें। हल्का गुनगुना रहने पर पानी को छानकर इसमें शहद मिलाएं और पी लें। इस चाय को दिन में दो बार पीया जा सकता है।
सेब का जूस और सेब का सिरका (Apple and Apple cider vinegar)- सेब में पित्त की पथरी को गलाने का गुण होता है, लेकिन इसे जूस के रूप में सेब के सिरके के साथ लेने पर यह ज्यादा असरकारी होता है। सेब में मौजूद मैलिक एसिड (mallic acid) पथरी को गलाने में मदद करता है तथा सेब का सिरका लिवर में कोलेस्ट्रॉल नहीं बनने देता, जो पथरी बनने के लिए जिम्मेदार होता है। यह घोल न केवल पथरी को गलाता है बल्कि दोबारा बनने से भी रोकता है और दर्द से भी राहत देता है।
उपचार के लिए- एक गिलास सेब के जूस में, एक चम्मच सेब का सिरका मिलाएं। इस जूस को रोजाना दिन भर में दो बार पीएं।
रोजाना 8 से 10 गिलास पानी जरूर पीएं। चाहे प्यास न भी लगी हो।
वसायुक्त या तेज मसाले वाले खाने से बचें।
प्रतिदिन कॉफी जरूर पीएं। बहुत ज्यादा भी नहीं लेकिन दिन में एक से दो कप काफी हैं। कॉफी भी पित्त वाहिका को बढ़ाती है जिससे पित्त की थैली में पथरी नहीं होती।
अपने खाने में विटामिन सी की मात्रा बढाएं। दिनभर में जितना ज्यादा संभव हो विटामिन सी से भरपूर चीजें खाएं।
हल्दी, सौंठ, काली मिर्च और हींग को खाने में जरूर शामिल करें।
 नाशपाती का जूस (Pear juice)- नाशपाती के आकार की पित्त की थैली को नाशपाती द्वारा ही साफ किया जाना संभव है। नाशपाती में मौजूद पैक्टिन (pectene) कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) को बनने और जमने से रोकता है। यूं भी नाशपाती गुणों की खान है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।
उपचार- एक गिलास गरम पानी में, एक गिलास नाशपाती का जूस और दो चम्मच शहद (honey) मिलाकर पीएं। इस जूस को एक दिन में तीन बार पीना चाहिए।



जोड़ो / घुटनों का दर्द / गठिया

1 . मेथी, सोंठ और हल्दी सामान मात्र में मिलकर, पीसकर नित्य सुबह शाम खाना खाने के बाद गरम पानी से दो – दो चम्मच फ़की लेने से लाभ होता हे.
2 . रोज सुबह  भूखे पेट एक चम्मच कुटी हुई दाना मेथी में, १ ग्राम कलोंजी मिलकर एक बार फाकी ले.
3 . दाना मेथी हमेशा सुबह खली पेट, दोपहर और रत को खाना खाने के बाद आधा चम्मच पानी के साथ फाकने से सभी जोड़ मजबूत रहेंगे और जोड़ो का दर्द कभी नहीं होगा.
4 . हल्दी, गुड, पीसी दान मेथी और पानी सामान मात्र में मिलकर, गरम करके इनका लेप रत को घुटनों पर करे. इस पर पट्टी बांध कर रत भर बंधे रहने दे. सुबह पट्टी हटा कर साफ कर ले. कुछ ही  में असर महसूस हो जयेग.
5.  अलसी के बीजो के साथ 2 अखरोट लेने से जोड़ो के दर्द से आराम मिलता हे.
6. मेथी के लड्डू खाने से हाथ पेरो के और जोड़ो के दर्दो में आराम मिलता हे.
7. 30 के उम्र के बाद दाना मेथी की फाकी लेने से शरीर के जोड़ मजबूत बने रहते हे. बुढ़ापे तक मधुमेह, ब्लड प्रेशर और गठिया जेसे रोगों से बचाव होता हे.
8. मेथी दाने को तवे या कढ़ाही में गुलाबी होने तक सेके. ठंडा होने पर पीस ले. रोज सुबह आधा चम्मच , एक गिलास पानी के साथ ले.
9. मेथी को दर्दारी कूट कर इसकी सर्दियों में २ चम्मच और गर्मी में एक चम्मच फाकी सुबह पानी के साथ ले.
10 . अंकुरित मेथी खाए और उसके खाने के बाद आधे घंटे तक कुछ न खये. 

Sunday, March 6, 2016

स्तनों की कसावट के घरेलू उपाय

स्तनों की देखभाल
कभी-कभी स्तनों में हलकी सूजन और कठोरता आ जाती है। मासिक धर्म के दिनों में प्रायः यह व्याधि हुआ करती है, जो मासिक ऋतु स्त्राव बन्द होते ही ठीक हो जाती है। ऐसी स्थिति में गर्म पानी से नैपकिन गीला करके स्तनों को सेकना चाहिए।

गर्भावस्था के दिनों में स्तनों को भली प्रकार धोना, अच्छे साबुन का प्रयोग करना, चुचुकों को साफ रखना यानी चुचुक बैठे हुए और ढीले हों तो उन्हें आहिस्ता से अंगुलियों से पकड़कर खींचना व मालिश द्वारा उन्नत व पर्याप्त उठे हुए बनाना चाहिए, ताकि नवजात शिशु के मुंह में भलीभांति दिए जा सकें। यदि हाथों के सहयोग से यह सम्भव न हो सके तो 'ब्रेस्ट पम्प' के प्रयोग से चुचुकों को उन्नत और
उठे हुए बनाया जा सकता है।

कभी-कभी चुचुकों में कटाव, शोथ या अलसर जैसी व्याधि हो जाती है, इसके लिए थोड़ा सा शुद्ध घी (गाय के दूध का) लें, सुहागा फुलाकर पीसकर इसमें मिला दें। माचिस की सींक की नोक के बराबर गंधक भी मिला लें। इन तीनों को अच्छी तरह मिलाकर मल्हम जैसा कर लें और स्तनों के चुचुक पर दिन में 3-4 बार लगाएं। ताजे मक्खन में थोड़ा सा कपूर मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।

लाभकारी उपाय :
फिटकरी 20 ग्राम, गैलिक एसिड 30 ग्राम, एसिड आफ लेड 30 ग्राम, तीनों को थोड़े से पानी में घोलकर स्तनों पर लेप करें और एक घंटे बाद शीतल जल से धो डालें। लगातार एक माह तक यदि यह प्रयोग किया गया तो 45 वर्ष की नारी के स्तन भी नवयौवना के स्तनों के समान पुष्ट हो जाएंगे।

गम्भारी की छाल 100 ग्राम व अनार के छिलके सुखाकर कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। दोनों चूर्ण 1-1 चम्मच लेकर जैतून के इतने तेल में मिलाएं कि लेप गाढ़ा बन जाए। इस लेप को स्तनों पर लगाकर अंगुलियों से हलकी-हलकी मालिश करें। आधा घंटे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो डालें। जो भी परिणाम मिले, उसकी सूचना कृपया हमें जरूर दें।

छोटी कटेरी नामक वनस्पति की जड़ व अनार की जड़ को पानी के साथ घिसकर गाढ़ा लेप करें। इस लेप को स्तनों पर लगाने से कुछ दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।

बरगद के पेड़ की जटा के बारीक नरम रेशों को पीसकर स्त्रियां अपने स्तनों पर लेप करें तो स्तनों का ढीलापन दूर होता है और कठोरता आती है।

इन्ही के साथ सर्वोत्तम यह भी रहेगा कि रात को सोने से पहले किसी भी तेल की 10 मिनट तक मालिश करें। या तो स्वयं करें या अपने पति से कराएं, मालिश के दिनों में गेप न करें, रेगुलर करें व दो माह बाद चमत्कार देखें। स्तनों की मालिश हमेशा नीचे से ऊपर ही करें।

स्तनों की शिथिलता दूर करने के लिए एरण्ड के पत्तों को सिरके में पीसकर स्तनों पर गाढ़ा लेप करने से कुछ ही दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। कुछ व्यायाम भी हैं, जो वक्षस्थल के सौन्दर्य और आकार को बनाए रखते हैं।

महिलाओं के शरीर में स्तनों का विशिष्ट स्थान है, इस दृष्टि से इनकी देखभाल और सुरक्षा करना बहुत जरूरी है। आज हर युवती चाहती है कि उसके स्तन उन्नत, सुडौल व विकसित दिखें। चेहरे के अलावा स्त्रियों के उन्नत स्तन ही आकर्षण का केन्द्र होते हैं।

जब किसी कारण किसी युवती के वक्षस्थल का समुचित विकास नहीं हो पाता तो वह चिंतित और दुःखी हो उठती है, प्रायः हमउम्र सहेलियों एवं परिवार की महिलाओं के सामने लज्जा का अनुभव करती है। उसे यह भी संकोच और भय होता है कि विवाह के बाद पति के सामने उसकी क्या स्थिति होगी।

शारीरिक सौंदर्य एवं देहयष्टि की दृष्टि से स्त्री शरीर में सुन्दर, स्वस्थ और सुडौल स्तन शारीरिक आकर्षण के प्रमुख अंग तो हैं ही, नवजात शिशु को पोषक, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक आहार उपलब्ध कराने वाले एकमात्र अंग भी हैं। कुमारी अथवा विवाहित युवतियों के लिए इन अंगों का स्वस्थ, पुष्ट और सुडौल होना आवश्यक माना जाता है।

स्त्री के शरीर में पुष्ट, उन्नत और सुडौल स्तन जहां उसके अच्छे स्वास्थ्य के सूचक होते हैं, वहीं नारित्व की गरिमा और सौन्दर्य वृद्धि करने वाले प्रमुख अंग भी होते हैं। अविकसित, सूखे हुए और छोटे स्तन भद्दे लगते हैं, वहीं ज्यादा बड़े-ढीले और बेडौल स्तन भी स्त्री के व्यक्तित्व और सौन्दर्य को नष्ट कर देते हैं। स्तनों का सुडौल, पुष्ट और उन्नत रहना स्त्री के अच्छे स्वास्थ्य और

स्वस्थ शरीर पर ही निर्भर है। घरेलू कामकाज और खासकर हाथों से परिश्रम करने के काम अवश्य करना चाहिए।

स्तनों का उचित विकास न होने के पीछे शारीरिक स्थिति भी एक कारण होती है। यदि शरीर बहुत दुबला-पतला हो, गर्भाशय में विकार हो, मासिक धर्म अनियमित हो तो युवती के स्तन अविकसित और छोटे आकार वाले रहेंगे, पुष्ट और सुडौल नही हो पाएंगे। एक कारण मानसिक भी होता है, लगातार चिंता, तनाव, शोक, भय और कुंठा से ग्रस्त रहने वाली, स्वभाव से निराश, नीरस और उदासीन प्रवृत्ति की युवती के भी स्तन अविकसित ही रहेंगे।

यदि वंशानुगत शारीरिक दुबलापन न हो तो उचित आहार और हलके व्यायाम से शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाया जा सकता है। जब पूरा शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाएगा तो स्तन भी विकसित और पुष्ट हो जाएंगे। शरीर बहुत ज्यादा दुबला-पतला, चेहरा पिचका हुआ और आंखें धंसी हुई होंगी तो यही हालत स्तनों की भी होता स्वाभाविक है।

इसके अलावा युवतियों की एक समस्या और है- बेडौल, ज्यादा बड़े आकार के व शिथिल स्तन होना। इसके कारण हैं शरीर का मोटा होना, चर्बी ज्यादा होना, ज्यादा मात्रा में भोजन करना, मीठे व गरिष्ठ पदार्थों का सेवन, सुबह ज्यादा देर तक सोना, दिन में अधिक देर तक सोना आदि। मानसिक कारणों में एक कारण और है- कामुक विचारों का चिंतन करना, अश्लील साहित्य या चित्रों का अवलोकन, हमउम्र सहेलियों से कामुकतापूर्ण बातें, किसी बहाने से अपने स्तन सहलवाना या मर्दन करवाना, किसी बहाने से स्तनों को छूने के पुरुषों को ज्यादा मौके देना आदि।

सावधानियां
किशोरावस्था में जब स्तनों का आकार बढ़ रहा हो, तब तंग अंगिया या ब्रेसरी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि उचित आकार की और तनिक ढीली अंगिया पहनना चाहिए। बिना अंगिया पहने नहीं रहना चाहिए वरना स्तन बेडौल और ढीले हो जाएंगे। ज्यादा तंग अंगिया पहनने से स्तनों के स्वाभाविक विकास में बाधा पड़ती है।

भलीभांति शारीरिक परिश्रम करने वाली, हाथों से काम करने वाली किशोर युवतियों के अंग-प्रत्यंगों का उचित विकास होता है और स्तन बहुत सुडौल और पुष्ट हो जाते हैं। प्रायः घरेलू काम जैसे कपड़े धोना, छाछ बिलौना, कुएं से पानी खींचना, बर्तन मांजना, झाड़ू-पोछा लगाना और चक्की पीसना ऐसे ही व्यायाम हैं, जो स्त्री के शरीर के सब अवयवों को स्वस्थ और सुडौल रखते हैं।

बच्चे को जन्म देते ही स्तनों का प्रयोग शुरू हो जाता है। स्तन के चुचुकों को भलीभांति अच्छे साबुन-पानी से धोकर साफ करके ही शिशु के मुंह में देना चाहिए। यदि बच्चे को दूध पिलाने के बाद भी स्तनों में दूध भरा रहे तो इस स्थिति में हाथ से या 'ब्रेस्ट पम्प' से, दूध निकाल देना चाहिए। सब प्रयत्न करने पर भी स्तन में कोई व्याधि, सूजन या पीड़ा हो तो शीघ्र ही किसी कुशल स्त्री चिकित्सक को दिखा देना चाहिए।

किसी भी स्थिति में स्तनों पर आघात नहीं लगने देना चाहिए। स्तन में कभी कोई छोटी सी गांठ हो जाए जो कठोर हो और स्तन से दूध की जगह खून आने लगे तो यह स्तन के कैंसर हो सकने की चेतावनी हो सकती है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना जरूरी है।
आयुर्वेद ने स्तनों की उत्तमता को यूं कहा है- स्तन अधिक ऊंचे न हों, अधिक लम्बे न हों, अधिक कृश (मांसरहित) न हों, अधिक मोटे न हों। स्तनों के चुचुक (निप्पल) उचित रूप से ऊंचे उठे हुए हों, ताकि बच्चा भलीभांति मुंह में लेकर सुखपूर्वक दूध पी सके, ऐसे स्तन उत्तम (स्तन सम्पत्‌) माने गए हैं।

नारी शरीर में स्तनों का विकास किशोर अवस्था के शुरू होते ही, 12-13 वर्ष की आयु होते ही होने लगता है और 16 से 18 वर्ष की आयु तक इनका विकास होता रहता है। गर्भ स्थापना होने की स्थिति में इनका विकास तेजी से होता है, ताकि बालक का जन्म होते ही, उसे इनसे दूध मिल सके। स्तनों का यही प्रमुख एवं महत्वपूर्ण उपयोग है।

Saturday, February 27, 2016

सफेद पानी से परेशानी और उसके घरेलू उपचार

रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से
बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है।
मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है।
गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।
ईसबगोल : ईसबगोल को दूध में देर तक उबालकर, उसमें मिश्री मिलाकर खाने से श्वेत प्रदर में बहुत लाभ होता है।
सफेद पेठा : औरतों के श्वेत प्रदर (जरायु से पीले, मटमैले या सफेद पानी जैसा तरल या गाढ़े स्राव के बहने को) रोग (ल्यूकोरिया), अधिक मासिक का स्राव (बहना), खून की कमी आदि रोगों में पेठे का साग घी में भूनकर खाने या उसके रस में चीनी को मिलाकर सुबह-शाम आधा-आधा गिलास पीने से आराम मिलता है।
झरबेरी : झरबेरी के बेरों को सुखाकर रख लें। इसे बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 3 से 4 ग्राम की मात्रा में चीनी (शक्कर) और शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम को प्रयोग करने से श्वेतप्रदर यानी ल्यूकोरिया का आना समाप्त हो जाता है।
नागकेशर : नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
रोहितक : रोहितक की जड़ को पीसकर पानी के साथ लेने से श्वेतप्रदर के रोग में लाभ मिलता है।
गाजर : गाजर, पालक, गोभी और चुकन्दर के रस को पीने से स्त्रियों के गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है और श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग भी ठीक हो जाता है।
मेथी :
मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है।

गूलर :
रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से लाभ श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में मिलता है
मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने और गर्भाशय में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है।
गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता हैआंवला : आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।

Saturday, January 23, 2016

The first method of exercise

हस्तमैथुन करने के लिए हाथ को आगे तथा पीछे करते रहें, जब आपको यह महसूस हो कि वीर्य निकलने वाला है तो उसी समय तुरंत ही रुक जाना चाहिए। उसके बाद कुछ समय रुककर इस कार्य को दुबारा से शुरू कर देना चाहिए। इस क्रिया को करते समय कम से कम पंद्रह मिनट का समय लगाना चाहिए तथा इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब रुके और जब शुरू करें तो इन दोनों के बीच इतना अंतर होना चाहिए कि पुनः हस्तमैथुन करते समय वीर्यपात करना जरुरी न हो जाए। इस व्यायाम को करने का यह मतलब होता है कि पुरुष वीर्यपात के निकलने से पहले के कारण को जान लें और वीर्य के निकलने से पहले ही अपनी उत्तेजना को रोकने के बारे में प्रैक्टिस करना सीख लें।
दूसरी विधिः-
यह विधि दूसरी विधि की ही तरह होती है। इस विधि में स्त्री पुरुष के ऊपर होती है तथा इस विधि में स्त्री की भूमिका बहुत ही जरुरी होती है। इस विधि में पुरुष स्त्री के कूल्हों को पकड़कर आगे-पीछे करता है। जब पुरुष यह महसूस करने लगे कि उसका वीर्य बाहर निकलने ही वाला है तो उसे स्त्री को इस क्रिया को करने के लिए रोक देना चाहिए। कुछ समय आराम करने के बाद दुबारा से इस क्रिया को शुरू कर देना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही इस बात को भी जरुर ध्यान रखें कि पुरुष के अंदर तनाव शीघ्रता से न आए। लिंग के अंदर तनाव धीरे-धीरे से ही आना चाहिए। पुरुष को इस क्रिया को तब तक करना चाहिए जब तक वे दोनों इस कार्य से संतुष्ट नहीं हो जाते हैं। इन तीनों विधियों को सीखने के बाद पुरुष किसी भी व्यायाम के द्वारा से संभोग क्रिया कर सकता है।

1 विधिः-
इस विधि को करने के लिए सबसे पहले पति पीठ के बल चित लेट जाए। इसके पश्चात पत्नी पति की टांगों के बीच में इस प्रकार से बैठे कि पत्नी की टांगें पुरुष की टांगों के ठीक नीचे हो। इसके बाद पत्नी अपने पति के लिंग को अपने हाथों से हस्तमैथुन करें। जब पति को यह लगने लगे कि उसका वीर्य बाहर निकलने वाला है तो पति को शीघ्र ही अपनी पत्नी को रुकने के लिए कह दे तो उसी समय पत्नी उसके लिंग पर से अपना हाथ हटा ले। इसके कुछ समय के बाद आराम करने पर पुरुष दूबारा से अपनी स्त्री को इस कार्य को करने के लिए कहे तथा इसके बाद पुनः आराम करें। इस कार्य को करने के लिए पंद्रह मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगना चाहिए। इस क्रिया को करते समय पुरुष को केवल अपनी कार्य पर ही ध्यान रखना चाहिए। सेक्स करते समय पुरुष को स्त्री के अंगों या सेक्स का बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। इस व्यायाम को करने रहने के बाद पुरुष 10 या 15 मिनट के बाद ही वीर्यपात करता है।
2 विधिः-
दूसरी विधि को करने के लिए स्त्री को वीर्यपात तक पहुंचने की बजाय पुरुष के लिंग के अंदर तनाव आने तक उसको उत्तेजित करें, इस तरह से करने के बाद स्त्री को पुरुष के ऊपर आ जाना चाहिए। इसके पश्चात स्त्री धीरे-धीरे पुरुष के लिंग को अपने हाथों से पकड़कर योनि के अंदर डाल दें। इसके बाद जब लिंग योनि के अंदर चला जाए तो स्त्री को चाहिए कि वह इस तरह बिना किसी चिंता के बिल्कुल चुप होकर लेटी रहें कि पुरुष को लगे कि उसका लिंग स्त्री की योनि के अंदर ही है। ऐसा करने के बाद जब पुरुष को यह महसूस हो कि उसका वीर्य निकलने वाला है तो उसे स्त्री को अपने ऊपर से हटा देना चाहिए। पुरुष का तनाव समाप्त हो जाने पर इस प्रकार का कार्य 15 मिनट तक करना चाहिए।
3 विधिः-
इस व्यायाम को करने के लिए अपने लिंग को इस प्रकार से पकड़े कि आपके हाथ का ज्यादा से ज्यादा स्पर्श आपके लिंग के साथ हो, यानि की लिंग योनि के अंदर जाने की जगह बना लें। लिंग के ऊपर अगर जरा सी कोई क्रीम या कोई चिकना तरल पदार्थ लगा लिया जाए तो उत्तेजना बनी रहेगी। चिकनाई लगाने से पुरुष को यह महसूस होता है कि वह योनि के अंदर लिंग से कार्य कर रहा है। इस प्रकार इस क्रिया को करने से वीर्य काफी समय बाद बाहर निकलता है।
अपने साथी की सहायता से वीर्यपात पर काबू करने की प्रैक्टिसः-