Wednesday, September 28, 2016

Science is surprised Sleep on the floor of the temple, where only are pregnant women

अब आप इसे ईश्‍वर में विश्‍वास कहें या अंधविश्‍वास पर ऐसे ही विज्ञान को हैरान करते चमत्‍कार की कहानी सुनाता है हिमाचल में स्‍थित सिमसा माता का मंदिर।
हिमाचल के सिमस गांव में एक सिमसा माता का मंदिर है जिसके फर्श पर सोने से निसंतान महिलाऐ प्रगनेंट हो जाती है। वैसे तो महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए न जाने कैसे-कैसे कष्टो से गुजरती हैं, लेकिन यहां तो सिर्फ फर्श पर सोने मात्र से संतान की प्राप्ति हो जाती है।इस मंदिर को संतान-दात्री के नाम से जाने जाता है। यहां दूर दूर से महिलाऐ इस मंदिर के फर्स पर सोने के लिए आती है। नवरात्रा में यहां सलिन्दरा उत्सव मनाया जाता है जिसका अर्थ है सपने आना, निसंतान महिलाये दिन रात इस मंदिर के फर्स पर सोती है। नवरात्रों में हिमाचल के पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ से ऐसी सैकड़ों महिलाएं इस मंदिर की ओर रूख करती हैं जिनके संतान नहीं होती है।नवरात्रों में निसंतान महिलायें मंदिर परिसर में डेरा डालती हैं और दिन रात मंदिर के फर्श पर सोती हैं ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा लेकर से मंदिर में आती हैं माता सिमसा उन्हें सपने में मानव रूप में या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान का आशीर्वाद प्रदान करती है।
लोगो का मानना है की माता सिमसा सपने में महिलाओ को फल देती है और महिलाए सपने में माता से उस फल को लेती है। इसे यह संकेत मिल जाता है की माता ने संतान का का आशिर्वाद दे दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं होता इस फल से इस बात का पता चल जाता की महिलाओं लड़का होगा की लड़की।मान्यता के अनुसार, यदि कोई महिला सपने में कोई कंद-मूल या फल प्राप्त करती है तो उस महिला को संतान का आशीर्वाद मिल जाता है। यहां तक की देवी सिमसा आने वाली संतान के लिंग-निर्धारण का भी संकेत देती है।जैसे कि, यदि किसी महिला को अमरुद का फल मिलता है तो समझ लें कि लड़का होगा। अगर किसी को सपने में भिन्डी प्राप्त होती है, तो समझें कि संतान के रूप में लड़की प्राप्त होगी। यदि किसी को निसंतान होने, धातु, लकड़ी या पत्थर की बनी कोई वस्तु प्राप्त हो तो समझा जाता है कि उसके संतान नहीं होगी। और उसके बाद भी वो महिला उस मंदिर से नहीं जाती है तो उसके शरीर में खुजली भरे लाल लाल दाग दिखने लगते है। इसलिए उसे मजबूरन वहां से जाना पड़ता है।मंदिर के पास पत्थर जो हिलता है एक उंगली से:-एक चमत्कार होता है यहां, सिमसा माता मंदिर के पास यह पत्थर बहुत प्रसिद्ध है। इस पत्थर को दोनों हाथों से हिलाना चाहो तो यह नही हिलेगा और आप अपने हाथ की सबसे छोटी ऊंगली से इस पत्थर को हिलाओगे तो यह हिल जायेगा।अब ये तो मान्यताएं हैं और मान्यतों के बारे में हम क्या कहें, हम इस बात की पुष्टि नहीं करते लेकिन जो सत्य है वो तो है ही

Now you say, trust in God, such as science or superstition tells a story about the miracle surprised Simsa Mata temple in Himachal.
Seamus village in Himachal Simsa mother sleep on the floor of the temple which is Prgnent Mahilaae Nisntan. Well, not for women on how Kshto progeny pass, but here, just sleep on the floor is only the realization of the child.
The temple is known as child-Datri. Far away from here Mahilaae fers to sleep on the temple comes. The festival is celebrated in Nvratra Slindera meaning dream come Nisntan women day and night sleeps at the temple fers. Navratra neighboring states of Himachal, Punjab, Haryana and Chandigarh, the temple sanctuary to hundreds of women whose children are not.
bless the child appeared provides.
Simsa people believe in the dream of the mother is a female fruit and that fruit takes women from the mother in the dream. This is indicative of the child's mother has given blessings. Not only that, the fruit is known to the boy's girl's women.
According to belief, if a woman in a dream, if it gets no roots or fruit of the female child is blessed. Even the determination of the sex of the child goddess Simsa incoming signals.
For example, if a woman is worth Guava will understand that boy. If someone comes in dreams okra, then the girl will understand that child. If anyone is Nisntan, metal, wood or stone get anything so that his children would not be considered. And then the girl that she is not from the temple, his body is itchy red spots start appearing. So he is forced to go from there.
Stone near the temple, which is moving from a finger -
Here is a miracle, Simsa Mata temple is very famous stone. If the stone does not have to move and shake with both hands the little finger of your hand, it will move the stone Hilaoge.
Now what shall we say about the beliefs and Manyton, but the truth is we do not confirm it is the same

Sunday, July 24, 2016

पित्त की थैली की पथरी को दूर करने के घरेलू उपचार

नाशपाती का जूस (Pear juice)- नाशपाती के आकार की पित्त की थैली को नाशपाती द्वारा ही साफ किया जाना संभव है। नाशपाती में मौजूद पैक्टिन (pectene) कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) को बनने और जमने से रोकता है। यूं भी नाशपाती गुणों की खान है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।
उपचार- एक गिलास गरम पानी में, एक गिलास नाशपाती का जूस और दो चम्मच शहद (honey) मिलाकर पीएं। इस जूस को एक दिन में तीन बार पीना चाहिए।
पुदीना (Mint)- पुदीना को पाचन के लिए सबसे अच्छी घरेलू औषधि (home remedy) माना जाता है जो पित्त वाहिका तथा पाचन से संबंधित अन्य रसों को बढ़ाता है। पुदीना में तारपीन (terpenes) भी होता है जो कि पथरी को गलाने में सहायक माना जाता है। पुदीने की पत्तियों से बनी चाय गॉल ब्लेडर स्टोन से राहत दे सकती है।
उपचार- पानी को गरम करें, इसमें ताजी या सूखी पुदीने के पत्तियों को उबालें। हल्का गुनगुना रहने पर पानी को छानकर इसमें शहद मिलाएं और पी लें। इस चाय को दिन में दो बार पीया जा सकता है।
सेब का जूस और सेब का सिरका (Apple and Apple cider vinegar)- सेब में पित्त की पथरी को गलाने का गुण होता है, लेकिन इसे जूस के रूप में सेब के सिरके के साथ लेने पर यह ज्यादा असरकारी होता है। सेब में मौजूद मैलिक एसिड (mallic acid) पथरी को गलाने में मदद करता है तथा सेब का सिरका लिवर में कोलेस्ट्रॉल नहीं बनने देता, जो पथरी बनने के लिए जिम्मेदार होता है। यह घोल न केवल पथरी को गलाता है बल्कि दोबारा बनने से भी रोकता है और दर्द से भी राहत देता है।
उपचार के लिए- एक गिलास सेब के जूस में, एक चम्मच सेब का सिरका मिलाएं। इस जूस को रोजाना दिन भर में दो बार पीएं।
रोजाना 8 से 10 गिलास पानी जरूर पीएं। चाहे प्यास न भी लगी हो।
वसायुक्त या तेज मसाले वाले खाने से बचें।
प्रतिदिन कॉफी जरूर पीएं। बहुत ज्यादा भी नहीं लेकिन दिन में एक से दो कप काफी हैं। कॉफी भी पित्त वाहिका को बढ़ाती है जिससे पित्त की थैली में पथरी नहीं होती।
अपने खाने में विटामिन सी की मात्रा बढाएं। दिनभर में जितना ज्यादा संभव हो विटामिन सी से भरपूर चीजें खाएं।
हल्दी, सौंठ, काली मिर्च और हींग को खाने में जरूर शामिल करें।
 नाशपाती का जूस (Pear juice)- नाशपाती के आकार की पित्त की थैली को नाशपाती द्वारा ही साफ किया जाना संभव है। नाशपाती में मौजूद पैक्टिन (pectene) कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) को बनने और जमने से रोकता है। यूं भी नाशपाती गुणों की खान है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।
उपचार- एक गिलास गरम पानी में, एक गिलास नाशपाती का जूस और दो चम्मच शहद (honey) मिलाकर पीएं। इस जूस को एक दिन में तीन बार पीना चाहिए।



जोड़ो / घुटनों का दर्द / गठिया

1 . मेथी, सोंठ और हल्दी सामान मात्र में मिलकर, पीसकर नित्य सुबह शाम खाना खाने के बाद गरम पानी से दो – दो चम्मच फ़की लेने से लाभ होता हे.
2 . रोज सुबह  भूखे पेट एक चम्मच कुटी हुई दाना मेथी में, १ ग्राम कलोंजी मिलकर एक बार फाकी ले.
3 . दाना मेथी हमेशा सुबह खली पेट, दोपहर और रत को खाना खाने के बाद आधा चम्मच पानी के साथ फाकने से सभी जोड़ मजबूत रहेंगे और जोड़ो का दर्द कभी नहीं होगा.
4 . हल्दी, गुड, पीसी दान मेथी और पानी सामान मात्र में मिलकर, गरम करके इनका लेप रत को घुटनों पर करे. इस पर पट्टी बांध कर रत भर बंधे रहने दे. सुबह पट्टी हटा कर साफ कर ले. कुछ ही  में असर महसूस हो जयेग.
5.  अलसी के बीजो के साथ 2 अखरोट लेने से जोड़ो के दर्द से आराम मिलता हे.
6. मेथी के लड्डू खाने से हाथ पेरो के और जोड़ो के दर्दो में आराम मिलता हे.
7. 30 के उम्र के बाद दाना मेथी की फाकी लेने से शरीर के जोड़ मजबूत बने रहते हे. बुढ़ापे तक मधुमेह, ब्लड प्रेशर और गठिया जेसे रोगों से बचाव होता हे.
8. मेथी दाने को तवे या कढ़ाही में गुलाबी होने तक सेके. ठंडा होने पर पीस ले. रोज सुबह आधा चम्मच , एक गिलास पानी के साथ ले.
9. मेथी को दर्दारी कूट कर इसकी सर्दियों में २ चम्मच और गर्मी में एक चम्मच फाकी सुबह पानी के साथ ले.
10 . अंकुरित मेथी खाए और उसके खाने के बाद आधे घंटे तक कुछ न खये. 

Sunday, March 6, 2016

स्तनों की कसावट के घरेलू उपाय

स्तनों की देखभाल
कभी-कभी स्तनों में हलकी सूजन और कठोरता आ जाती है। मासिक धर्म के दिनों में प्रायः यह व्याधि हुआ करती है, जो मासिक ऋतु स्त्राव बन्द होते ही ठीक हो जाती है। ऐसी स्थिति में गर्म पानी से नैपकिन गीला करके स्तनों को सेकना चाहिए।

गर्भावस्था के दिनों में स्तनों को भली प्रकार धोना, अच्छे साबुन का प्रयोग करना, चुचुकों को साफ रखना यानी चुचुक बैठे हुए और ढीले हों तो उन्हें आहिस्ता से अंगुलियों से पकड़कर खींचना व मालिश द्वारा उन्नत व पर्याप्त उठे हुए बनाना चाहिए, ताकि नवजात शिशु के मुंह में भलीभांति दिए जा सकें। यदि हाथों के सहयोग से यह सम्भव न हो सके तो 'ब्रेस्ट पम्प' के प्रयोग से चुचुकों को उन्नत और
उठे हुए बनाया जा सकता है।

कभी-कभी चुचुकों में कटाव, शोथ या अलसर जैसी व्याधि हो जाती है, इसके लिए थोड़ा सा शुद्ध घी (गाय के दूध का) लें, सुहागा फुलाकर पीसकर इसमें मिला दें। माचिस की सींक की नोक के बराबर गंधक भी मिला लें। इन तीनों को अच्छी तरह मिलाकर मल्हम जैसा कर लें और स्तनों के चुचुक पर दिन में 3-4 बार लगाएं। ताजे मक्खन में थोड़ा सा कपूर मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।

लाभकारी उपाय :
फिटकरी 20 ग्राम, गैलिक एसिड 30 ग्राम, एसिड आफ लेड 30 ग्राम, तीनों को थोड़े से पानी में घोलकर स्तनों पर लेप करें और एक घंटे बाद शीतल जल से धो डालें। लगातार एक माह तक यदि यह प्रयोग किया गया तो 45 वर्ष की नारी के स्तन भी नवयौवना के स्तनों के समान पुष्ट हो जाएंगे।

गम्भारी की छाल 100 ग्राम व अनार के छिलके सुखाकर कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। दोनों चूर्ण 1-1 चम्मच लेकर जैतून के इतने तेल में मिलाएं कि लेप गाढ़ा बन जाए। इस लेप को स्तनों पर लगाकर अंगुलियों से हलकी-हलकी मालिश करें। आधा घंटे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो डालें। जो भी परिणाम मिले, उसकी सूचना कृपया हमें जरूर दें।

छोटी कटेरी नामक वनस्पति की जड़ व अनार की जड़ को पानी के साथ घिसकर गाढ़ा लेप करें। इस लेप को स्तनों पर लगाने से कुछ दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।

बरगद के पेड़ की जटा के बारीक नरम रेशों को पीसकर स्त्रियां अपने स्तनों पर लेप करें तो स्तनों का ढीलापन दूर होता है और कठोरता आती है।

इन्ही के साथ सर्वोत्तम यह भी रहेगा कि रात को सोने से पहले किसी भी तेल की 10 मिनट तक मालिश करें। या तो स्वयं करें या अपने पति से कराएं, मालिश के दिनों में गेप न करें, रेगुलर करें व दो माह बाद चमत्कार देखें। स्तनों की मालिश हमेशा नीचे से ऊपर ही करें।

स्तनों की शिथिलता दूर करने के लिए एरण्ड के पत्तों को सिरके में पीसकर स्तनों पर गाढ़ा लेप करने से कुछ ही दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। कुछ व्यायाम भी हैं, जो वक्षस्थल के सौन्दर्य और आकार को बनाए रखते हैं।

महिलाओं के शरीर में स्तनों का विशिष्ट स्थान है, इस दृष्टि से इनकी देखभाल और सुरक्षा करना बहुत जरूरी है। आज हर युवती चाहती है कि उसके स्तन उन्नत, सुडौल व विकसित दिखें। चेहरे के अलावा स्त्रियों के उन्नत स्तन ही आकर्षण का केन्द्र होते हैं।

जब किसी कारण किसी युवती के वक्षस्थल का समुचित विकास नहीं हो पाता तो वह चिंतित और दुःखी हो उठती है, प्रायः हमउम्र सहेलियों एवं परिवार की महिलाओं के सामने लज्जा का अनुभव करती है। उसे यह भी संकोच और भय होता है कि विवाह के बाद पति के सामने उसकी क्या स्थिति होगी।

शारीरिक सौंदर्य एवं देहयष्टि की दृष्टि से स्त्री शरीर में सुन्दर, स्वस्थ और सुडौल स्तन शारीरिक आकर्षण के प्रमुख अंग तो हैं ही, नवजात शिशु को पोषक, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक आहार उपलब्ध कराने वाले एकमात्र अंग भी हैं। कुमारी अथवा विवाहित युवतियों के लिए इन अंगों का स्वस्थ, पुष्ट और सुडौल होना आवश्यक माना जाता है।

स्त्री के शरीर में पुष्ट, उन्नत और सुडौल स्तन जहां उसके अच्छे स्वास्थ्य के सूचक होते हैं, वहीं नारित्व की गरिमा और सौन्दर्य वृद्धि करने वाले प्रमुख अंग भी होते हैं। अविकसित, सूखे हुए और छोटे स्तन भद्दे लगते हैं, वहीं ज्यादा बड़े-ढीले और बेडौल स्तन भी स्त्री के व्यक्तित्व और सौन्दर्य को नष्ट कर देते हैं। स्तनों का सुडौल, पुष्ट और उन्नत रहना स्त्री के अच्छे स्वास्थ्य और

स्वस्थ शरीर पर ही निर्भर है। घरेलू कामकाज और खासकर हाथों से परिश्रम करने के काम अवश्य करना चाहिए।

स्तनों का उचित विकास न होने के पीछे शारीरिक स्थिति भी एक कारण होती है। यदि शरीर बहुत दुबला-पतला हो, गर्भाशय में विकार हो, मासिक धर्म अनियमित हो तो युवती के स्तन अविकसित और छोटे आकार वाले रहेंगे, पुष्ट और सुडौल नही हो पाएंगे। एक कारण मानसिक भी होता है, लगातार चिंता, तनाव, शोक, भय और कुंठा से ग्रस्त रहने वाली, स्वभाव से निराश, नीरस और उदासीन प्रवृत्ति की युवती के भी स्तन अविकसित ही रहेंगे।

यदि वंशानुगत शारीरिक दुबलापन न हो तो उचित आहार और हलके व्यायाम से शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाया जा सकता है। जब पूरा शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाएगा तो स्तन भी विकसित और पुष्ट हो जाएंगे। शरीर बहुत ज्यादा दुबला-पतला, चेहरा पिचका हुआ और आंखें धंसी हुई होंगी तो यही हालत स्तनों की भी होता स्वाभाविक है।

इसके अलावा युवतियों की एक समस्या और है- बेडौल, ज्यादा बड़े आकार के व शिथिल स्तन होना। इसके कारण हैं शरीर का मोटा होना, चर्बी ज्यादा होना, ज्यादा मात्रा में भोजन करना, मीठे व गरिष्ठ पदार्थों का सेवन, सुबह ज्यादा देर तक सोना, दिन में अधिक देर तक सोना आदि। मानसिक कारणों में एक कारण और है- कामुक विचारों का चिंतन करना, अश्लील साहित्य या चित्रों का अवलोकन, हमउम्र सहेलियों से कामुकतापूर्ण बातें, किसी बहाने से अपने स्तन सहलवाना या मर्दन करवाना, किसी बहाने से स्तनों को छूने के पुरुषों को ज्यादा मौके देना आदि।

सावधानियां
किशोरावस्था में जब स्तनों का आकार बढ़ रहा हो, तब तंग अंगिया या ब्रेसरी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि उचित आकार की और तनिक ढीली अंगिया पहनना चाहिए। बिना अंगिया पहने नहीं रहना चाहिए वरना स्तन बेडौल और ढीले हो जाएंगे। ज्यादा तंग अंगिया पहनने से स्तनों के स्वाभाविक विकास में बाधा पड़ती है।

भलीभांति शारीरिक परिश्रम करने वाली, हाथों से काम करने वाली किशोर युवतियों के अंग-प्रत्यंगों का उचित विकास होता है और स्तन बहुत सुडौल और पुष्ट हो जाते हैं। प्रायः घरेलू काम जैसे कपड़े धोना, छाछ बिलौना, कुएं से पानी खींचना, बर्तन मांजना, झाड़ू-पोछा लगाना और चक्की पीसना ऐसे ही व्यायाम हैं, जो स्त्री के शरीर के सब अवयवों को स्वस्थ और सुडौल रखते हैं।

बच्चे को जन्म देते ही स्तनों का प्रयोग शुरू हो जाता है। स्तन के चुचुकों को भलीभांति अच्छे साबुन-पानी से धोकर साफ करके ही शिशु के मुंह में देना चाहिए। यदि बच्चे को दूध पिलाने के बाद भी स्तनों में दूध भरा रहे तो इस स्थिति में हाथ से या 'ब्रेस्ट पम्प' से, दूध निकाल देना चाहिए। सब प्रयत्न करने पर भी स्तन में कोई व्याधि, सूजन या पीड़ा हो तो शीघ्र ही किसी कुशल स्त्री चिकित्सक को दिखा देना चाहिए।

किसी भी स्थिति में स्तनों पर आघात नहीं लगने देना चाहिए। स्तन में कभी कोई छोटी सी गांठ हो जाए जो कठोर हो और स्तन से दूध की जगह खून आने लगे तो यह स्तन के कैंसर हो सकने की चेतावनी हो सकती है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना जरूरी है।
आयुर्वेद ने स्तनों की उत्तमता को यूं कहा है- स्तन अधिक ऊंचे न हों, अधिक लम्बे न हों, अधिक कृश (मांसरहित) न हों, अधिक मोटे न हों। स्तनों के चुचुक (निप्पल) उचित रूप से ऊंचे उठे हुए हों, ताकि बच्चा भलीभांति मुंह में लेकर सुखपूर्वक दूध पी सके, ऐसे स्तन उत्तम (स्तन सम्पत्‌) माने गए हैं।

नारी शरीर में स्तनों का विकास किशोर अवस्था के शुरू होते ही, 12-13 वर्ष की आयु होते ही होने लगता है और 16 से 18 वर्ष की आयु तक इनका विकास होता रहता है। गर्भ स्थापना होने की स्थिति में इनका विकास तेजी से होता है, ताकि बालक का जन्म होते ही, उसे इनसे दूध मिल सके। स्तनों का यही प्रमुख एवं महत्वपूर्ण उपयोग है।

Saturday, February 27, 2016

सफेद पानी से परेशानी और उसके घरेलू उपचार

रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से
बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है।
मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है।
गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।
ईसबगोल : ईसबगोल को दूध में देर तक उबालकर, उसमें मिश्री मिलाकर खाने से श्वेत प्रदर में बहुत लाभ होता है।
सफेद पेठा : औरतों के श्वेत प्रदर (जरायु से पीले, मटमैले या सफेद पानी जैसा तरल या गाढ़े स्राव के बहने को) रोग (ल्यूकोरिया), अधिक मासिक का स्राव (बहना), खून की कमी आदि रोगों में पेठे का साग घी में भूनकर खाने या उसके रस में चीनी को मिलाकर सुबह-शाम आधा-आधा गिलास पीने से आराम मिलता है।
झरबेरी : झरबेरी के बेरों को सुखाकर रख लें। इसे बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 3 से 4 ग्राम की मात्रा में चीनी (शक्कर) और शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम को प्रयोग करने से श्वेतप्रदर यानी ल्यूकोरिया का आना समाप्त हो जाता है।
नागकेशर : नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
रोहितक : रोहितक की जड़ को पीसकर पानी के साथ लेने से श्वेतप्रदर के रोग में लाभ मिलता है।
गाजर : गाजर, पालक, गोभी और चुकन्दर के रस को पीने से स्त्रियों के गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है और श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग भी ठीक हो जाता है।
मेथी :
मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है।

गूलर :
रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से लाभ श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में मिलता है
मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने और गर्भाशय में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है।
गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता हैआंवला : आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।

Saturday, January 23, 2016

The first method of exercise

हस्तमैथुन करने के लिए हाथ को आगे तथा पीछे करते रहें, जब आपको यह महसूस हो कि वीर्य निकलने वाला है तो उसी समय तुरंत ही रुक जाना चाहिए। उसके बाद कुछ समय रुककर इस कार्य को दुबारा से शुरू कर देना चाहिए। इस क्रिया को करते समय कम से कम पंद्रह मिनट का समय लगाना चाहिए तथा इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब रुके और जब शुरू करें तो इन दोनों के बीच इतना अंतर होना चाहिए कि पुनः हस्तमैथुन करते समय वीर्यपात करना जरुरी न हो जाए। इस व्यायाम को करने का यह मतलब होता है कि पुरुष वीर्यपात के निकलने से पहले के कारण को जान लें और वीर्य के निकलने से पहले ही अपनी उत्तेजना को रोकने के बारे में प्रैक्टिस करना सीख लें।
दूसरी विधिः-
यह विधि दूसरी विधि की ही तरह होती है। इस विधि में स्त्री पुरुष के ऊपर होती है तथा इस विधि में स्त्री की भूमिका बहुत ही जरुरी होती है। इस विधि में पुरुष स्त्री के कूल्हों को पकड़कर आगे-पीछे करता है। जब पुरुष यह महसूस करने लगे कि उसका वीर्य बाहर निकलने ही वाला है तो उसे स्त्री को इस क्रिया को करने के लिए रोक देना चाहिए। कुछ समय आराम करने के बाद दुबारा से इस क्रिया को शुरू कर देना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही इस बात को भी जरुर ध्यान रखें कि पुरुष के अंदर तनाव शीघ्रता से न आए। लिंग के अंदर तनाव धीरे-धीरे से ही आना चाहिए। पुरुष को इस क्रिया को तब तक करना चाहिए जब तक वे दोनों इस कार्य से संतुष्ट नहीं हो जाते हैं। इन तीनों विधियों को सीखने के बाद पुरुष किसी भी व्यायाम के द्वारा से संभोग क्रिया कर सकता है।

1 विधिः-
इस विधि को करने के लिए सबसे पहले पति पीठ के बल चित लेट जाए। इसके पश्चात पत्नी पति की टांगों के बीच में इस प्रकार से बैठे कि पत्नी की टांगें पुरुष की टांगों के ठीक नीचे हो। इसके बाद पत्नी अपने पति के लिंग को अपने हाथों से हस्तमैथुन करें। जब पति को यह लगने लगे कि उसका वीर्य बाहर निकलने वाला है तो पति को शीघ्र ही अपनी पत्नी को रुकने के लिए कह दे तो उसी समय पत्नी उसके लिंग पर से अपना हाथ हटा ले। इसके कुछ समय के बाद आराम करने पर पुरुष दूबारा से अपनी स्त्री को इस कार्य को करने के लिए कहे तथा इसके बाद पुनः आराम करें। इस कार्य को करने के लिए पंद्रह मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगना चाहिए। इस क्रिया को करते समय पुरुष को केवल अपनी कार्य पर ही ध्यान रखना चाहिए। सेक्स करते समय पुरुष को स्त्री के अंगों या सेक्स का बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। इस व्यायाम को करने रहने के बाद पुरुष 10 या 15 मिनट के बाद ही वीर्यपात करता है।
2 विधिः-
दूसरी विधि को करने के लिए स्त्री को वीर्यपात तक पहुंचने की बजाय पुरुष के लिंग के अंदर तनाव आने तक उसको उत्तेजित करें, इस तरह से करने के बाद स्त्री को पुरुष के ऊपर आ जाना चाहिए। इसके पश्चात स्त्री धीरे-धीरे पुरुष के लिंग को अपने हाथों से पकड़कर योनि के अंदर डाल दें। इसके बाद जब लिंग योनि के अंदर चला जाए तो स्त्री को चाहिए कि वह इस तरह बिना किसी चिंता के बिल्कुल चुप होकर लेटी रहें कि पुरुष को लगे कि उसका लिंग स्त्री की योनि के अंदर ही है। ऐसा करने के बाद जब पुरुष को यह महसूस हो कि उसका वीर्य निकलने वाला है तो उसे स्त्री को अपने ऊपर से हटा देना चाहिए। पुरुष का तनाव समाप्त हो जाने पर इस प्रकार का कार्य 15 मिनट तक करना चाहिए।
3 विधिः-
इस व्यायाम को करने के लिए अपने लिंग को इस प्रकार से पकड़े कि आपके हाथ का ज्यादा से ज्यादा स्पर्श आपके लिंग के साथ हो, यानि की लिंग योनि के अंदर जाने की जगह बना लें। लिंग के ऊपर अगर जरा सी कोई क्रीम या कोई चिकना तरल पदार्थ लगा लिया जाए तो उत्तेजना बनी रहेगी। चिकनाई लगाने से पुरुष को यह महसूस होता है कि वह योनि के अंदर लिंग से कार्य कर रहा है। इस प्रकार इस क्रिया को करने से वीर्य काफी समय बाद बाहर निकलता है।
अपने साथी की सहायता से वीर्यपात पर काबू करने की प्रैक्टिसः-

Thursday, January 14, 2016

PAIN IN VAGINA

नीम
नीम की निम्बोली (बीज) और एरण्ड के बीजों का गूदा नीम के पत्तों को निचोड़कर प्राप्त हुए रस में पीसकर योनि में लगाने से योनि की पीड़ा शांत होती हैं। नोट- इनमें से किसी एक के न मिलने पर किसी एक बीज के गूदे का प्रयोग भी कर सकते हैं।
नीम के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से योनि को धोने से फुंसियों के कारण होने वाले योनि के दर्द में लाभ मिलता है।
नीम की छाल को पानी के साथ पीसकर योनि पर लेप लगाने से नाखूनों के द्वारा खुजलाने से हुऐ जख्म में दर्द को राहत मिलती है।
आंवला
आंवले के रस में चीनी को डालकर प्रतिदिन सुबह-शाम प्रयोग करने से योनि की जलन मिट जाती है।
आंवले का चूर्ण 10 ग्राम और 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर प्रतिदिन 2 बार खुराक के रूप में सेवन करने से योनि में होने वाली जलन मिट जाती है।
तिल
लगभग 6 ग्राम तिलों का चूर्ण गर्म पानी के साथ दिन में दो बार देने से लाभ होता है।
धतूरा
धतूरे के पत्तों को पीसकर उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक और घी मिलाकर कपडे़ की पोटली बना लें। रात्रि में सोने से पूर्व पोटली योनि में रखने और सुबह निकाल लेने से दर्द में आराम मिलता है।
माजूफल
माजूफल को पानी में पीसकर रूई का फोहा बनाकर स्त्री की योनि में संभोग (सहवास) करने से पहले रख दें, इसके बाद संभोग करने से से योनि में दर्द नहीं होता है। नोट: इसका प्रयोग गर्भ को रोकने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसलिए सोच समझकर ही इस्तेमाल करें।
सोंठ
सोंठ को गर्म पानी में पीसकर योनि पर लेप करने से योनि के दर्द में आराम मिलता है।
सोंठ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर रोजाना दूध में पकाकर गर्म-गर्म सुबह-शाम प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
10 ग्राम सोंठ लगभग 400 मिलीलीटर पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर 20 ग्राम गुड़ के साथ प्रयोग करने से मासिक धर्म (ऋतुस्त्राव) से योनि में होने वाली पीड़ा को समाप्त हो जाती है।

कारण:
योनि में दर्द कई कारणों से हो सकता है जैसे- चोट लगने से, सीढ़ियों से गिरने, गुसलखाने में फिसल जाने पर, काफी समय तक भीगे वस्त्रों में कपड़े धोने से, नवयुवतियां का नंगे पैर फर्श साफ करने से, नंगे पांव गीले पांव फर्श पर रसोईघर में काम करने से इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी होते हैं, आंतरिक वस्त्र, तौलिया, फुंसियां होने पर, योनि के संकुचन होने पर, प्रसव (बच्चे के जन्म के बाद) सूतिका की बीमारी में जीवाणुओं के संक्रमण से, मासिक-धर्म के समय पर न होने पर, खुजलाते वक्त नाखून लग जाने पर योनि के भीतर की बहुत कोमल त्वचा में जख्म हो जाने से योनि में दर्द होने लगता है।

Sex in pregnancy

मनुष्य के मन में एक साधारण सी भावना होती है कि गर्भावस्था में संभोग क्रिया करने से मां या होने वाले बच्चे को हानि होती है लेकिन यह धारणा गलत है। गर्भावस्था में संभोग करना हानिकारक नहीं होता है परन्तु फिर भी सावधानी ही सफलता की कुंजी है।
स्त्रियों के शरीर का रक्त गाढ़ा लाल होने के कारण हानिकारक हो सकता है जिसको गर्भपात की पहली अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में पूर्ण विश्राम और डाक्टर की राय लेना उचित होता है। यदि डाक्टर इस स्थिति को नियन्त्रण में कर लेते हैं तो रक्त भूरे रंग का होने लगता है। गाढे़ लाल रंग का रक्त गर्भावस्था ठीक न होने की सूचना देता है। यह अवस्था ओवल के बच्चेदानी से छूट जाने के कारण हो जाती है। यदि रक्त भूरे रंग का होने के बाद रुक गया हो तो ऐसी स्थिति में अधिक से अधिक विश्राम करना चाहिए। ऐसी स्थिति में संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे हानि हो सकती है।
संभोग क्रिया के बाद दो तरीके से बच्चेदानी सिकुड़ना शुरू होती है। एक तो संभोग के बाद स्वयं शरीर में प्रबल उत्तेजना होती है जिससे शरीर की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं। इसी के कारण बच्चेदानी भी सिकुड़ती है। दूसरा पुरुष के वीर्य में हार्मोन्स प्रैस्टागलैण्डीन होने के कारण भी बच्चेदानी में स्वयं सिकुड़न पैदा होती है।
संभोग क्रिया के बाद स्त्रियों के स्तनों में एक प्रकार की उत्तेजना पैदा होती है। यह उत्तेजना हार्मोन्स द्वारा पैदा की जाती है जो दिमाग की पिट्यूटरी ग्रन्थि से पैदा होकर शरीर में पहुंचाई जाती है जिसको आक्सीटोसिन कहते हैं जो बच्चेदानी को संकुचित करती है। यदि बच्चा होने का समय निकट है तो यह बच्चेदानी में दर्द होना भी शुरू करा सकता है।
यही हार्मोन्स ग्लूकोज के सहारे स्त्रियों को दिया जाता है जो प्रसव के दर्द को प्रारम्भ करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि गर्भावस्था का समय पूरा न हुआ हो तो स्तनों की उत्तेजना स्त्रियों के लिए हानिकारक हो सकती है। यह हार्मोन्स बच्चा होने से पहले बच्चेदानी के मुंह को पतला और मुलायम करके बच्चा होने की स्थिति को उत्पन्न करता है।
गर्भावस्था के शुरू के सप्ताह या फिर शुरू के माह में ही रक्तस्राव हो या फिर स्त्री को पहले ही गर्भपात व गर्भाशय के अन्य विकार हो तो ऐसी दशा में संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए। इसके लिए स्त्री को अपने डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए और डॉक्टर से किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछने में हिचक नहीं करनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान संभोग क्रिया कोई आवश्यक चीज नहीं है। यह तभी करनी चाहिए जब स्त्री-पुरुष दोनों शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हों।
गर्भावस्था के समय में दिमागी उलझने, चिन्ताएं, पारिवारिक, आर्थिक कारण या कोई परेशानी होने पर संभोग करने के बारे में सोचना भी बेकार है। ऐसा कार्य जिसमें व्यक्ति को मानसिक शान्ति न प्राप्त हो, बेकार होता है।
स्त्री के शरीर में बच्चेदानी चारों ओर से हडि्डयों से घिरी रहती है। बच्चेदानी में भी एक झिल्ली होती है जो एक पानी के गुब्बारे के समान होती है जिसे एमनीओटिक सेंक कहते हैं। इसी में एमनीओटिक द्रव भरा रहता है। बच्चा एमनीओटिक द्रव में रहता है। बच्चेदानी का मुंह एक ढक्कन की तरह बन्द होता है जो बाहर के रोग (इन्फैक्शन) को अन्दर नहीं जाने देता। इस कारण गर्भावस्था में संभोग क्रिया करते समय बच्चे को हानि नहीं होती। एमनीओटिक द्रव संभोग के समय लगने वाले झटकों को चारों ओर फैला देता हैं जिस कारण बच्चा सुरक्षित रहता है। पेट पर अधिक दबाव मां और बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। संभोग क्रिया के दौरान कभी-कभी स्तन पर दबाव, रगड़ या अधिक गर्मी के कारण बच्चे को हानि हो सकती है।
कुछ स्त्रियां गर्भावस्था में सेक्स क्रिया पसन्द नहीं करती है तथा इसके लिए उनकी इच्छा भी नहीं होती है। ऐसी स्थिति में उनके पतियों को उनकी मनोदशा को अच्छी तरह समझाना चाहिए और समय के अनुसार उनका सहयोग भी करना चाहिए।
गर्भावस्था में संभोग क्रिया के बाद कुछ स्त्रियों को थोड़ा सा रक्त चला जाता है। स्त्रियों को लगता है ऐसी स्थिति संभोग क्रिया के कारण ही पैदा हुई है। लेकिन गर्भावस्था में माहवारी की ही तारीखों में शुरू-शुरू में हार्मोन्स की कमी के कारण रक्त जा सकता है। यह हल्के रंग का होता है लेकिन कभी-कभी रुककर रक्त का दाग भी देता है।
इस स्थिति को स्त्री को हार्मोन्स देकर ठीक किया जा सकता है। रक्त आदि जाने पर डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। यदि इस परिस्थिति को समय के साथ संभाल लिया गया तो होने वाले बच्चे को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है।

Sunday, January 10, 2016

विटामिन की कमी के संकेत क्या क्या कारण है

मुंह के कोनों में दरारें पड़ना

यह नियासिन (बी 3), राइबोफ्लेविन (बी 2), और बी 12, आयरन, ज़िंक, और विटामिन बी की कमी का लक्षण है। शआकाहारी लोगों में  यह आम होता है। इससे बचने के लिए दाल, अंडा, मछली, ट्यूना, क्लेम, टमाटर, मूंगफली, और फलियां आदि खाएं। 

चेहरे पर लाल दाने, या बाल झड़ना
यह अकसर बायोटिन (बी 7) जिसे कि हेयर विटामिन के नाम से भी जाना जाता है, की कमी से होता है। जब आपका शरीर वसा में घुलनशील विटामिन (जैसे ए, डी, ई, के आदि) का भंडारण कर रहा होता है तो यह पानी में घुलनशील, विटामिन बी को नहीं बचाता। इससे बचने के लिए पकाए हुए अंडे, सामन, एवकाडो, मशरूम, फूलगोभी, सोयाबीन, नट, रसभरी व केले आदि का सेवन करें। 

लाव व सफेद एक्ने (गाल, हाथ, जांघों और कूल्हों पर)
ऐसा आमतौर पर आवश्यक फैटी एसिड और विटामिन ए और डी की कमी से होता है। इससे बचने के लिए संतृप्त वसा और ट्रांस वसा का सेवन कम करें और और स्वस्थ वसा में वृद्धि करें। आप चाहें तो केवल डॉक्टर की सलाह से इसके लिए सप्लीमेंट भी ले सकते हैं। 

हाथ, पैर आदि में झुनझुनी, चुभन, और स्तब्ध होना
यह विटामिन बी ,जैसे फोलेट (B9), बी -6, और बी 12 की कमी के कारण होता है। यह परिधीय नसों और जहां वे खतम होती हैं, वहां से संबंधित एक समस्या होती है। इन लक्षणों के साथ चिंता, अवसाद, एनीमिया, थकान, और हार्मोन असंतुलन आदि भी देखे जा  सकते हैं। इससे बचने के लिए पालक, शतावरी, बीट, सेम, अंडे आदि का सेवन करना चहिए। 

मांसपेशियों में ऐंठन
पैर की उंगलियों, पैरों की मेहराब में दर्द, पैरों के पीछे की ओर दर्द व ऐंठन मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटेशियम आदि की कमी के कारण होत है। इससे बचने के लिए केले, बादाम, अखरोट, स्क्वैश, चेरी, सेब, अंगूर, ब्रोकोली आदि का नियमित सेवन करें। 

प्रोटीन की कमी से होने वाली मसूडों की बीमारियां
मसूड़ों की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। लेकिन 35 वर्ष की उम्र के बाद मसूड़ों की बीमारी का खतरा बढ जाता है। और अगर शरीर में प्रोटीन की कमी हो तो इस उम्र में हर चार में से तीन लोग मसूड़ों की बीमारी से पीड़ित होते हैं। प्रतिदिन 1000 मिलीग्राम प्रोटीन और विटामिन खाने से मसूडों की समस्या कम होती है।

मल्टीपल स्क्लेरोसिस
जिन लोगों में विटामिन 'डी' की कमी होती है उन्हें मल्टीपल स्क्लेरोसिस होने का जोखिम अधिक रहता है। कनाडा में हुए एक शोध के अनुसार सूरज की रोशनी से मिलने वाला यह विटामिन मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एमएस) को रोकता है। स्क्लेरोसिस में अंग या टिश्यू  कठोर हो जाते हैं। इस अध्ययन की रिपोर्ट मांट्रियल में मल्टीपल स्क्लेरोसिस पर आयोजित एक सम्मेलन में प्रस्तुत की गई थी। 

शिशुओं की मांसपेशियों में मरोड़ और सांस लेने में परेशानी
शिशुओं में विटामिन डी की कमी होने पर मांसपेशियों में मरोड़े, सांस लेने में परेशानी और दौरे आने की समस्या हो सकती है। उनके शरीर में कैल्शियम की भी कमी हो जाती है। सांस की तकलीफ की वजह से बच्चे की पसलियां नर्म रह जाती हैं और आस-पास की मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती हैं।


मास्‍टालजिया क्‍या है और स्‍तनों में पीड़ा

स्‍तनों में दर्द होने के लक्षण और संकेत

स्‍वयं महिला ही लक्षण को महसूस कर सकती है। वह इस बारे में डॉक्‍टर, नर्स, मित्र अथवा परिवार के किसी व्‍यक्ति से बात कर सकती है। यानी दर्द का लक्षण तो दर्द ही है, वहीं बात अगर संकेत की जाए तो, स्‍तनों के आसपास की त्‍वचा पर रैशेज हो जाते हैं। 

स्‍तनों में दर्द को आमतौर पर दो हिस्‍सों में बांटा जाता है- साइक्लिक और नॉन साइक्लिक

साइक्लिक ब्रेस्‍ट पेन का लक्षण और संकेत

  • यह दर्द चक्र में आता है, वैसे ही जैसे मासिक धर्म चक्र आता है।
  • स्‍तनों में जकड़न हो सकती है
  • मरीज को तेज दर्द और हल्‍की खुजली हो सकती है। कई महिलायें इसे स्‍तनों में भारीपन के साथ सूजन के तौर पर व्‍याख्यित करती हैं, वहीं कुछ के लिए यह चुभन और जलन का अहसास हो सकता है।
  • स्‍तनों में सूजन आ सकती है
  • स्‍तनों में गांठें भी पड़ सकती हैं
  • दोनों स्‍तनों में दर्द की शिकायत होती है, विशेषकर ऊपरी और बाहरी हिस्‍सा।
  • दर्द आपकी बगलों तक फैल सकता है।
  • मासिक धर्म नजदीक आने के साथ ही दर्द में तेज इजाफा होता है। कुछ मामलों में यह दर्द मासिक धर्म शुरू होने के हफ्ते दो हफ्ते पहले शुरू हो सकता है।
  • यह दर्द सामान्‍यत युवा महिलाओं को अधिक परेशान करता है। अधिक उम्र (पोस्‍ट मेनोपॉज) महिलाओं ने यदि हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी करवा ली हो, तो उन्‍हें भी ऐसी समस्‍या हो सकती है
  • मास्‍ट‍िटिस

    अगर स्‍तनों में दर्द किसी संक्रमण के कारण है, तो महिला को बुखार अथवा उनकी तबीयत खराब रह सकती है। महिलाओं को स्‍तनों में सूजन और कोमलता की शिकायत भी हो सकती है तथा दर्द वाले हिस्‍से का तापमान भी सामान्‍य से अधिक हो सकता है। और वहां लालिमा हो सकती है। इस दर्द में जलन के साथ झनझनाहट भी होती है। स्‍तनपान करवाने वाली महिलाओं में यह दर्द स्‍तनपान करवाते समय और बढ़ सकता है।


    एक्‍स्‍ट्रामेमारी पेन

    ऐसा आभास होता है कि स्‍तनों में दर्द अंदरूनी किसी कारण से है, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। कई बार इसे 'रेफेर्ड पेन' भी कहा जाता है। कुछ महिलाओं में चेस्‍ट वॉल सिंड्रोम्‍स में हो सकता है। 

नॉन साइक्लिक ब्रेस्‍ट पेन

यह सामान्‍य तौर पर एक ही स्‍तन में होता है। हालांकि, सामान्‍यत: यह स्‍तन के केवल एक चौथाई भाग में ही यह दर्द होता है, लेकिन यह पूरे सीने में फैल जाते हैं। 
यह पोस्‍ट मेनोपॉज यानी अधिक उम्र की महिलाओं में अधिक होता है। 
इस दर्द का मासिक धर्म चक्र से कोई संबंध नहीं होता।
दर्द सतत अथवा छिटपुट हो सकता है।




हालांकि यह दर्द सामान्‍य होता है और इसे लेकर अधिक घबराने की जरूरत नहीं, लेकिन फिर भी यदि आपको किसी प्रकार की चिंता अथवा संशय हो तो आप डॉक्‍टर से मदद ले सकती हैं।

एन्डोमेट्रीओसिस बांझपन अर्थात अन्तर्गर्भाशय-अस्थानता के लक्षण

कहां होता है एंडोमेट्रिओसिस

एंडोमेट्रिअल उत्तक जो एंडोमेट्रिओसिस का कारण बन सकते हैं वे अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, आंत और मलाशय आदि में फैल सकते हैं। ये गर्भाशय, ब्‍लैडर और मूत्रवाहिनी और गर्भाशय के पीछे भी हो सकता है। इसके साथ ही एंडोमेट्रिओसिस श्रोणि क्षेत्र के अन्‍य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। इसके लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि एंडोमेट्रिअल की अतिरिक्‍त उत्तक किस क्षेत्र में बढ़े हैं। और समय के साथ-साथ इसके लक्षण गंभीर हो सकते हैं।

स्‍कार टिशू डेवलपमेंट

एंडोमेट्रिअल के अतिरिक्‍त उत्तक जो एंडोमेट्रिओसिस का कारण बन सकते हैं उसी तरह हार्मोन से प्रभावित हो सकते हैं, जैसे गर्भाशय अस्‍तर हार्मोन से प्रभावित होता है। हर महीने उत्तक बनते और समाप्‍त हो जाते हैं। जब ये उत्तक नष्‍ट होते हैं तो रक्‍त स्राव होता है जिससे अन्‍य उत्तकों पर निशान पड़ जाते हैं। ये स्‍कार टिशू श्रोणि क्षेत्र के अंगों और उत्तकों को एक दूसरे पर बढ़ने का कारण बनते हैं।

दर्द के लक्षण

श्रोणि में दर्द एंडोमेट्रिओसिस का सबसे सामान्‍य लक्षण है। मूत्र त्‍यागते, संभोग करते और मल त्‍याग करते समय तेज दर्द की शिकायत हो सकती है। मासिक धर्म शुरू होने से पहले भी महिला को तेज दर्द हो सकता है। श्रोणि दर्द और ऐंठन जैसी समस्‍यायें मासिक धर्म के दौरान काफी बढ़ सकती हैं। मासिक धर्म के दौरान होने वाला यह दर्द पेट और कमर की मांसपेशियों तक जा सकता है।

अनियमित रक्‍त स्राव

एंडोमेट्रिओसिस से महीने में कई बार रक्‍त स्राव हो सकता है। इसके साथ ही मासिक धर्म के दौरान होने वाला रक्‍त स्राव भी सामान्‍य से अधिक हो सकता है।

प्रजनन क्षमता समाप्‍त होना

एंडोमेट्रिओसिस का बुरा प्रभाव महिला की प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है। ये अतिरिक्‍त उत्तक पुरुष वीर्य को महिला गर्भाशय में जाने से रोक लेते हैं, इससे महिला गर्भधारण नहीं कर पाती। एक अनुमान के अनुसार हर तीसरा महिला को एंडोमे‍ट्रिओसिस हो सकता है।

ईलाज

इस रोग का इलाज हार्मोन दवाओं अथवा सर्जरी के जरिये हो सकता है। सर्जरी से अतिरिक्‍त उत्तकों को हटा दिया जाता है। हालांकि, करीब पचास फीसदी मामलों में सर्जरी के बाद एंडोमेट्रिओसिस के लक्षण लौट आते हैं। कुछ गंभीर मामलों में लंबे आराम के लिए हिस्‍टेरेक्‍टॉमी का सहारा भी लिया जाता है।

Thursday, January 7, 2016

वियाग्रा की तरह काम करनेवाली ये छह कुदरती चीजें Health

आप इन कुदरती चीजों की मदद से भी अपने यौन जीवन को बेहतर बना सकते हैं। ये कुदरती जरूर है लेकिन ये आपके सेक्स लाइफ को ये चीजें वियाग्रा की तरह ही मजेदार बना सकती है। जिनसेंग: चीन में इस के जड़ तीन रूप में पाये जाते हैं- एशियन जिनसेंग, साइबेरियन जिनसेंग, और अमेरिकन जिनसेंग। लंबे अरसे से चीनी लोग इसका प्रयोग यौन संबंधी समस्याओं के लिए प्रयोग करते आ रहे हैं। बाजार में जिनसेंग पेस्ट, पावडर और कैप्सूल के रूप में पाया जाता है। जानकार इसके 5 से 10 ग्राम रोजाना लेने की सलाह देते है। यह सेक्स जीवन में वियाग्रा की तरह रोल प्ले करने में सहायक होता है। हींग: हींग सेक्स को मजेदार बनाने के लिए बेहतर माना जाता है। जानकारों के मुताबिक 0.06 रोजाना हींग का सेवन 40 दिनों तक लगातार करने से कामोत्तेजना बढ़ाने में काफी मदद मिलती है। इस नुस्खे का सेवन आपके सेक्स लाइफ को बेहतर और मजेदार बनाने में सहायक साबित होता है। जीरा: मसाले सिर्फ आपके व्यंजन का स्वाद बढ़ाने का काम ही नहीं करते हैं बल्कि आपके यौन जीवन को और भी स्पाइसी बना देते हैं। उन्हीं मसालों में से एक होता है जीरा। जीरा में जिंक और मिनरल होता है जो शुक्राणु के संख्या को बढ़ाने में मदद करते हैं। यह पुरूषों के शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, संतानोत्पादक शक्ति के समस्या को समाधान करने में मदद करता है। रोज सुबह खाली पेट जीरा का काढ़ा एक कप उबलते हुए पानी में आधा छोटा चम्मच जीरा डालकर जीरा का काढ़ा बना सकते हैं पीने से इससे लाभ मिलता है। अदरक: अदरक एक ऐसा मसाला है जो यौन जीवन को सुधारने में भी मदद करता है। यह पुरुषों के शीघ्रपतन, और नपुंसकता की समस्या से राहत दिलाने में बहुत मदद करते हैं। रात को सोने के पहले एक हाफ बॉयल अंडे के साथ शहद और एक छोटा चम्मच अदरक का रस डालकर खाने से लाभ मिलता है। यह सेक्स जीवन को पूरी तरह से स्पाइसी बनाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ता है। इसको खाने से शरीर में एन्डोरफीन का निष्कासन होता है जो सेक्स जीवन को सुधारने में बहुत मदद करता है। अदरक का सेवन करने से सेक्स के दौरान उत्तेजना में बढ़ोतरी होती है। रात में डिनर के वक्त इसे खाया जाए या फिर अदरक वाली चाय का सेवन किया जाना चाहिए। इसके सेवन से दिल की धड़कन बढ़ती है, खून का प्रवाह तेज होता है जिससे उत्तेजना बढ़ती है। लहसुन: जानकारों के मुताबिक लहसुन में कोमोत्तेजक गुण पाए जाते हैं, जो रक्त संचार और और यौन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। लहसुन में एलीकीन होता है जो कि सेक्सी भागों में खून के प्रवाह को बढ़ाता है। कामेच्छा बढ़ाने के लिए लहसुन के कैप्सूल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लहसुन की दो-तीन कलियां कच्चा चबाकर खाने से सेक्स पावर बढ़ता है।