Saturday, January 23, 2016

The first method of exercise

हस्तमैथुन करने के लिए हाथ को आगे तथा पीछे करते रहें, जब आपको यह महसूस हो कि वीर्य निकलने वाला है तो उसी समय तुरंत ही रुक जाना चाहिए। उसके बाद कुछ समय रुककर इस कार्य को दुबारा से शुरू कर देना चाहिए। इस क्रिया को करते समय कम से कम पंद्रह मिनट का समय लगाना चाहिए तथा इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब रुके और जब शुरू करें तो इन दोनों के बीच इतना अंतर होना चाहिए कि पुनः हस्तमैथुन करते समय वीर्यपात करना जरुरी न हो जाए। इस व्यायाम को करने का यह मतलब होता है कि पुरुष वीर्यपात के निकलने से पहले के कारण को जान लें और वीर्य के निकलने से पहले ही अपनी उत्तेजना को रोकने के बारे में प्रैक्टिस करना सीख लें।
दूसरी विधिः-
यह विधि दूसरी विधि की ही तरह होती है। इस विधि में स्त्री पुरुष के ऊपर होती है तथा इस विधि में स्त्री की भूमिका बहुत ही जरुरी होती है। इस विधि में पुरुष स्त्री के कूल्हों को पकड़कर आगे-पीछे करता है। जब पुरुष यह महसूस करने लगे कि उसका वीर्य बाहर निकलने ही वाला है तो उसे स्त्री को इस क्रिया को करने के लिए रोक देना चाहिए। कुछ समय आराम करने के बाद दुबारा से इस क्रिया को शुरू कर देना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही इस बात को भी जरुर ध्यान रखें कि पुरुष के अंदर तनाव शीघ्रता से न आए। लिंग के अंदर तनाव धीरे-धीरे से ही आना चाहिए। पुरुष को इस क्रिया को तब तक करना चाहिए जब तक वे दोनों इस कार्य से संतुष्ट नहीं हो जाते हैं। इन तीनों विधियों को सीखने के बाद पुरुष किसी भी व्यायाम के द्वारा से संभोग क्रिया कर सकता है।

1 विधिः-
इस विधि को करने के लिए सबसे पहले पति पीठ के बल चित लेट जाए। इसके पश्चात पत्नी पति की टांगों के बीच में इस प्रकार से बैठे कि पत्नी की टांगें पुरुष की टांगों के ठीक नीचे हो। इसके बाद पत्नी अपने पति के लिंग को अपने हाथों से हस्तमैथुन करें। जब पति को यह लगने लगे कि उसका वीर्य बाहर निकलने वाला है तो पति को शीघ्र ही अपनी पत्नी को रुकने के लिए कह दे तो उसी समय पत्नी उसके लिंग पर से अपना हाथ हटा ले। इसके कुछ समय के बाद आराम करने पर पुरुष दूबारा से अपनी स्त्री को इस कार्य को करने के लिए कहे तथा इसके बाद पुनः आराम करें। इस कार्य को करने के लिए पंद्रह मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगना चाहिए। इस क्रिया को करते समय पुरुष को केवल अपनी कार्य पर ही ध्यान रखना चाहिए। सेक्स करते समय पुरुष को स्त्री के अंगों या सेक्स का बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। इस व्यायाम को करने रहने के बाद पुरुष 10 या 15 मिनट के बाद ही वीर्यपात करता है।
2 विधिः-
दूसरी विधि को करने के लिए स्त्री को वीर्यपात तक पहुंचने की बजाय पुरुष के लिंग के अंदर तनाव आने तक उसको उत्तेजित करें, इस तरह से करने के बाद स्त्री को पुरुष के ऊपर आ जाना चाहिए। इसके पश्चात स्त्री धीरे-धीरे पुरुष के लिंग को अपने हाथों से पकड़कर योनि के अंदर डाल दें। इसके बाद जब लिंग योनि के अंदर चला जाए तो स्त्री को चाहिए कि वह इस तरह बिना किसी चिंता के बिल्कुल चुप होकर लेटी रहें कि पुरुष को लगे कि उसका लिंग स्त्री की योनि के अंदर ही है। ऐसा करने के बाद जब पुरुष को यह महसूस हो कि उसका वीर्य निकलने वाला है तो उसे स्त्री को अपने ऊपर से हटा देना चाहिए। पुरुष का तनाव समाप्त हो जाने पर इस प्रकार का कार्य 15 मिनट तक करना चाहिए।
3 विधिः-
इस व्यायाम को करने के लिए अपने लिंग को इस प्रकार से पकड़े कि आपके हाथ का ज्यादा से ज्यादा स्पर्श आपके लिंग के साथ हो, यानि की लिंग योनि के अंदर जाने की जगह बना लें। लिंग के ऊपर अगर जरा सी कोई क्रीम या कोई चिकना तरल पदार्थ लगा लिया जाए तो उत्तेजना बनी रहेगी। चिकनाई लगाने से पुरुष को यह महसूस होता है कि वह योनि के अंदर लिंग से कार्य कर रहा है। इस प्रकार इस क्रिया को करने से वीर्य काफी समय बाद बाहर निकलता है।
अपने साथी की सहायता से वीर्यपात पर काबू करने की प्रैक्टिसः-

Thursday, January 14, 2016

PAIN IN VAGINA

नीम
नीम की निम्बोली (बीज) और एरण्ड के बीजों का गूदा नीम के पत्तों को निचोड़कर प्राप्त हुए रस में पीसकर योनि में लगाने से योनि की पीड़ा शांत होती हैं। नोट- इनमें से किसी एक के न मिलने पर किसी एक बीज के गूदे का प्रयोग भी कर सकते हैं।
नीम के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से योनि को धोने से फुंसियों के कारण होने वाले योनि के दर्द में लाभ मिलता है।
नीम की छाल को पानी के साथ पीसकर योनि पर लेप लगाने से नाखूनों के द्वारा खुजलाने से हुऐ जख्म में दर्द को राहत मिलती है।
आंवला
आंवले के रस में चीनी को डालकर प्रतिदिन सुबह-शाम प्रयोग करने से योनि की जलन मिट जाती है।
आंवले का चूर्ण 10 ग्राम और 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर प्रतिदिन 2 बार खुराक के रूप में सेवन करने से योनि में होने वाली जलन मिट जाती है।
तिल
लगभग 6 ग्राम तिलों का चूर्ण गर्म पानी के साथ दिन में दो बार देने से लाभ होता है।
धतूरा
धतूरे के पत्तों को पीसकर उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक और घी मिलाकर कपडे़ की पोटली बना लें। रात्रि में सोने से पूर्व पोटली योनि में रखने और सुबह निकाल लेने से दर्द में आराम मिलता है।
माजूफल
माजूफल को पानी में पीसकर रूई का फोहा बनाकर स्त्री की योनि में संभोग (सहवास) करने से पहले रख दें, इसके बाद संभोग करने से से योनि में दर्द नहीं होता है। नोट: इसका प्रयोग गर्भ को रोकने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसलिए सोच समझकर ही इस्तेमाल करें।
सोंठ
सोंठ को गर्म पानी में पीसकर योनि पर लेप करने से योनि के दर्द में आराम मिलता है।
सोंठ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर रोजाना दूध में पकाकर गर्म-गर्म सुबह-शाम प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
10 ग्राम सोंठ लगभग 400 मिलीलीटर पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर 20 ग्राम गुड़ के साथ प्रयोग करने से मासिक धर्म (ऋतुस्त्राव) से योनि में होने वाली पीड़ा को समाप्त हो जाती है।

कारण:
योनि में दर्द कई कारणों से हो सकता है जैसे- चोट लगने से, सीढ़ियों से गिरने, गुसलखाने में फिसल जाने पर, काफी समय तक भीगे वस्त्रों में कपड़े धोने से, नवयुवतियां का नंगे पैर फर्श साफ करने से, नंगे पांव गीले पांव फर्श पर रसोईघर में काम करने से इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी होते हैं, आंतरिक वस्त्र, तौलिया, फुंसियां होने पर, योनि के संकुचन होने पर, प्रसव (बच्चे के जन्म के बाद) सूतिका की बीमारी में जीवाणुओं के संक्रमण से, मासिक-धर्म के समय पर न होने पर, खुजलाते वक्त नाखून लग जाने पर योनि के भीतर की बहुत कोमल त्वचा में जख्म हो जाने से योनि में दर्द होने लगता है।

Sex in pregnancy

मनुष्य के मन में एक साधारण सी भावना होती है कि गर्भावस्था में संभोग क्रिया करने से मां या होने वाले बच्चे को हानि होती है लेकिन यह धारणा गलत है। गर्भावस्था में संभोग करना हानिकारक नहीं होता है परन्तु फिर भी सावधानी ही सफलता की कुंजी है।
स्त्रियों के शरीर का रक्त गाढ़ा लाल होने के कारण हानिकारक हो सकता है जिसको गर्भपात की पहली अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में पूर्ण विश्राम और डाक्टर की राय लेना उचित होता है। यदि डाक्टर इस स्थिति को नियन्त्रण में कर लेते हैं तो रक्त भूरे रंग का होने लगता है। गाढे़ लाल रंग का रक्त गर्भावस्था ठीक न होने की सूचना देता है। यह अवस्था ओवल के बच्चेदानी से छूट जाने के कारण हो जाती है। यदि रक्त भूरे रंग का होने के बाद रुक गया हो तो ऐसी स्थिति में अधिक से अधिक विश्राम करना चाहिए। ऐसी स्थिति में संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे हानि हो सकती है।
संभोग क्रिया के बाद दो तरीके से बच्चेदानी सिकुड़ना शुरू होती है। एक तो संभोग के बाद स्वयं शरीर में प्रबल उत्तेजना होती है जिससे शरीर की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं। इसी के कारण बच्चेदानी भी सिकुड़ती है। दूसरा पुरुष के वीर्य में हार्मोन्स प्रैस्टागलैण्डीन होने के कारण भी बच्चेदानी में स्वयं सिकुड़न पैदा होती है।
संभोग क्रिया के बाद स्त्रियों के स्तनों में एक प्रकार की उत्तेजना पैदा होती है। यह उत्तेजना हार्मोन्स द्वारा पैदा की जाती है जो दिमाग की पिट्यूटरी ग्रन्थि से पैदा होकर शरीर में पहुंचाई जाती है जिसको आक्सीटोसिन कहते हैं जो बच्चेदानी को संकुचित करती है। यदि बच्चा होने का समय निकट है तो यह बच्चेदानी में दर्द होना भी शुरू करा सकता है।
यही हार्मोन्स ग्लूकोज के सहारे स्त्रियों को दिया जाता है जो प्रसव के दर्द को प्रारम्भ करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि गर्भावस्था का समय पूरा न हुआ हो तो स्तनों की उत्तेजना स्त्रियों के लिए हानिकारक हो सकती है। यह हार्मोन्स बच्चा होने से पहले बच्चेदानी के मुंह को पतला और मुलायम करके बच्चा होने की स्थिति को उत्पन्न करता है।
गर्भावस्था के शुरू के सप्ताह या फिर शुरू के माह में ही रक्तस्राव हो या फिर स्त्री को पहले ही गर्भपात व गर्भाशय के अन्य विकार हो तो ऐसी दशा में संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए। इसके लिए स्त्री को अपने डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए और डॉक्टर से किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछने में हिचक नहीं करनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान संभोग क्रिया कोई आवश्यक चीज नहीं है। यह तभी करनी चाहिए जब स्त्री-पुरुष दोनों शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हों।
गर्भावस्था के समय में दिमागी उलझने, चिन्ताएं, पारिवारिक, आर्थिक कारण या कोई परेशानी होने पर संभोग करने के बारे में सोचना भी बेकार है। ऐसा कार्य जिसमें व्यक्ति को मानसिक शान्ति न प्राप्त हो, बेकार होता है।
स्त्री के शरीर में बच्चेदानी चारों ओर से हडि्डयों से घिरी रहती है। बच्चेदानी में भी एक झिल्ली होती है जो एक पानी के गुब्बारे के समान होती है जिसे एमनीओटिक सेंक कहते हैं। इसी में एमनीओटिक द्रव भरा रहता है। बच्चा एमनीओटिक द्रव में रहता है। बच्चेदानी का मुंह एक ढक्कन की तरह बन्द होता है जो बाहर के रोग (इन्फैक्शन) को अन्दर नहीं जाने देता। इस कारण गर्भावस्था में संभोग क्रिया करते समय बच्चे को हानि नहीं होती। एमनीओटिक द्रव संभोग के समय लगने वाले झटकों को चारों ओर फैला देता हैं जिस कारण बच्चा सुरक्षित रहता है। पेट पर अधिक दबाव मां और बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। संभोग क्रिया के दौरान कभी-कभी स्तन पर दबाव, रगड़ या अधिक गर्मी के कारण बच्चे को हानि हो सकती है।
कुछ स्त्रियां गर्भावस्था में सेक्स क्रिया पसन्द नहीं करती है तथा इसके लिए उनकी इच्छा भी नहीं होती है। ऐसी स्थिति में उनके पतियों को उनकी मनोदशा को अच्छी तरह समझाना चाहिए और समय के अनुसार उनका सहयोग भी करना चाहिए।
गर्भावस्था में संभोग क्रिया के बाद कुछ स्त्रियों को थोड़ा सा रक्त चला जाता है। स्त्रियों को लगता है ऐसी स्थिति संभोग क्रिया के कारण ही पैदा हुई है। लेकिन गर्भावस्था में माहवारी की ही तारीखों में शुरू-शुरू में हार्मोन्स की कमी के कारण रक्त जा सकता है। यह हल्के रंग का होता है लेकिन कभी-कभी रुककर रक्त का दाग भी देता है।
इस स्थिति को स्त्री को हार्मोन्स देकर ठीक किया जा सकता है। रक्त आदि जाने पर डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। यदि इस परिस्थिति को समय के साथ संभाल लिया गया तो होने वाले बच्चे को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है।

Sunday, January 10, 2016

विटामिन की कमी के संकेत क्या क्या कारण है

मुंह के कोनों में दरारें पड़ना

यह नियासिन (बी 3), राइबोफ्लेविन (बी 2), और बी 12, आयरन, ज़िंक, और विटामिन बी की कमी का लक्षण है। शआकाहारी लोगों में  यह आम होता है। इससे बचने के लिए दाल, अंडा, मछली, ट्यूना, क्लेम, टमाटर, मूंगफली, और फलियां आदि खाएं। 

चेहरे पर लाल दाने, या बाल झड़ना
यह अकसर बायोटिन (बी 7) जिसे कि हेयर विटामिन के नाम से भी जाना जाता है, की कमी से होता है। जब आपका शरीर वसा में घुलनशील विटामिन (जैसे ए, डी, ई, के आदि) का भंडारण कर रहा होता है तो यह पानी में घुलनशील, विटामिन बी को नहीं बचाता। इससे बचने के लिए पकाए हुए अंडे, सामन, एवकाडो, मशरूम, फूलगोभी, सोयाबीन, नट, रसभरी व केले आदि का सेवन करें। 

लाव व सफेद एक्ने (गाल, हाथ, जांघों और कूल्हों पर)
ऐसा आमतौर पर आवश्यक फैटी एसिड और विटामिन ए और डी की कमी से होता है। इससे बचने के लिए संतृप्त वसा और ट्रांस वसा का सेवन कम करें और और स्वस्थ वसा में वृद्धि करें। आप चाहें तो केवल डॉक्टर की सलाह से इसके लिए सप्लीमेंट भी ले सकते हैं। 

हाथ, पैर आदि में झुनझुनी, चुभन, और स्तब्ध होना
यह विटामिन बी ,जैसे फोलेट (B9), बी -6, और बी 12 की कमी के कारण होता है। यह परिधीय नसों और जहां वे खतम होती हैं, वहां से संबंधित एक समस्या होती है। इन लक्षणों के साथ चिंता, अवसाद, एनीमिया, थकान, और हार्मोन असंतुलन आदि भी देखे जा  सकते हैं। इससे बचने के लिए पालक, शतावरी, बीट, सेम, अंडे आदि का सेवन करना चहिए। 

मांसपेशियों में ऐंठन
पैर की उंगलियों, पैरों की मेहराब में दर्द, पैरों के पीछे की ओर दर्द व ऐंठन मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटेशियम आदि की कमी के कारण होत है। इससे बचने के लिए केले, बादाम, अखरोट, स्क्वैश, चेरी, सेब, अंगूर, ब्रोकोली आदि का नियमित सेवन करें। 

प्रोटीन की कमी से होने वाली मसूडों की बीमारियां
मसूड़ों की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। लेकिन 35 वर्ष की उम्र के बाद मसूड़ों की बीमारी का खतरा बढ जाता है। और अगर शरीर में प्रोटीन की कमी हो तो इस उम्र में हर चार में से तीन लोग मसूड़ों की बीमारी से पीड़ित होते हैं। प्रतिदिन 1000 मिलीग्राम प्रोटीन और विटामिन खाने से मसूडों की समस्या कम होती है।

मल्टीपल स्क्लेरोसिस
जिन लोगों में विटामिन 'डी' की कमी होती है उन्हें मल्टीपल स्क्लेरोसिस होने का जोखिम अधिक रहता है। कनाडा में हुए एक शोध के अनुसार सूरज की रोशनी से मिलने वाला यह विटामिन मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एमएस) को रोकता है। स्क्लेरोसिस में अंग या टिश्यू  कठोर हो जाते हैं। इस अध्ययन की रिपोर्ट मांट्रियल में मल्टीपल स्क्लेरोसिस पर आयोजित एक सम्मेलन में प्रस्तुत की गई थी। 

शिशुओं की मांसपेशियों में मरोड़ और सांस लेने में परेशानी
शिशुओं में विटामिन डी की कमी होने पर मांसपेशियों में मरोड़े, सांस लेने में परेशानी और दौरे आने की समस्या हो सकती है। उनके शरीर में कैल्शियम की भी कमी हो जाती है। सांस की तकलीफ की वजह से बच्चे की पसलियां नर्म रह जाती हैं और आस-पास की मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती हैं।


मास्‍टालजिया क्‍या है और स्‍तनों में पीड़ा

स्‍तनों में दर्द होने के लक्षण और संकेत

स्‍वयं महिला ही लक्षण को महसूस कर सकती है। वह इस बारे में डॉक्‍टर, नर्स, मित्र अथवा परिवार के किसी व्‍यक्ति से बात कर सकती है। यानी दर्द का लक्षण तो दर्द ही है, वहीं बात अगर संकेत की जाए तो, स्‍तनों के आसपास की त्‍वचा पर रैशेज हो जाते हैं। 

स्‍तनों में दर्द को आमतौर पर दो हिस्‍सों में बांटा जाता है- साइक्लिक और नॉन साइक्लिक

साइक्लिक ब्रेस्‍ट पेन का लक्षण और संकेत

  • यह दर्द चक्र में आता है, वैसे ही जैसे मासिक धर्म चक्र आता है।
  • स्‍तनों में जकड़न हो सकती है
  • मरीज को तेज दर्द और हल्‍की खुजली हो सकती है। कई महिलायें इसे स्‍तनों में भारीपन के साथ सूजन के तौर पर व्‍याख्यित करती हैं, वहीं कुछ के लिए यह चुभन और जलन का अहसास हो सकता है।
  • स्‍तनों में सूजन आ सकती है
  • स्‍तनों में गांठें भी पड़ सकती हैं
  • दोनों स्‍तनों में दर्द की शिकायत होती है, विशेषकर ऊपरी और बाहरी हिस्‍सा।
  • दर्द आपकी बगलों तक फैल सकता है।
  • मासिक धर्म नजदीक आने के साथ ही दर्द में तेज इजाफा होता है। कुछ मामलों में यह दर्द मासिक धर्म शुरू होने के हफ्ते दो हफ्ते पहले शुरू हो सकता है।
  • यह दर्द सामान्‍यत युवा महिलाओं को अधिक परेशान करता है। अधिक उम्र (पोस्‍ट मेनोपॉज) महिलाओं ने यदि हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी करवा ली हो, तो उन्‍हें भी ऐसी समस्‍या हो सकती है
  • मास्‍ट‍िटिस

    अगर स्‍तनों में दर्द किसी संक्रमण के कारण है, तो महिला को बुखार अथवा उनकी तबीयत खराब रह सकती है। महिलाओं को स्‍तनों में सूजन और कोमलता की शिकायत भी हो सकती है तथा दर्द वाले हिस्‍से का तापमान भी सामान्‍य से अधिक हो सकता है। और वहां लालिमा हो सकती है। इस दर्द में जलन के साथ झनझनाहट भी होती है। स्‍तनपान करवाने वाली महिलाओं में यह दर्द स्‍तनपान करवाते समय और बढ़ सकता है।


    एक्‍स्‍ट्रामेमारी पेन

    ऐसा आभास होता है कि स्‍तनों में दर्द अंदरूनी किसी कारण से है, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। कई बार इसे 'रेफेर्ड पेन' भी कहा जाता है। कुछ महिलाओं में चेस्‍ट वॉल सिंड्रोम्‍स में हो सकता है। 

नॉन साइक्लिक ब्रेस्‍ट पेन

यह सामान्‍य तौर पर एक ही स्‍तन में होता है। हालांकि, सामान्‍यत: यह स्‍तन के केवल एक चौथाई भाग में ही यह दर्द होता है, लेकिन यह पूरे सीने में फैल जाते हैं। 
यह पोस्‍ट मेनोपॉज यानी अधिक उम्र की महिलाओं में अधिक होता है। 
इस दर्द का मासिक धर्म चक्र से कोई संबंध नहीं होता।
दर्द सतत अथवा छिटपुट हो सकता है।




हालांकि यह दर्द सामान्‍य होता है और इसे लेकर अधिक घबराने की जरूरत नहीं, लेकिन फिर भी यदि आपको किसी प्रकार की चिंता अथवा संशय हो तो आप डॉक्‍टर से मदद ले सकती हैं।

एन्डोमेट्रीओसिस बांझपन अर्थात अन्तर्गर्भाशय-अस्थानता के लक्षण

कहां होता है एंडोमेट्रिओसिस

एंडोमेट्रिअल उत्तक जो एंडोमेट्रिओसिस का कारण बन सकते हैं वे अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, आंत और मलाशय आदि में फैल सकते हैं। ये गर्भाशय, ब्‍लैडर और मूत्रवाहिनी और गर्भाशय के पीछे भी हो सकता है। इसके साथ ही एंडोमेट्रिओसिस श्रोणि क्षेत्र के अन्‍य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। इसके लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि एंडोमेट्रिअल की अतिरिक्‍त उत्तक किस क्षेत्र में बढ़े हैं। और समय के साथ-साथ इसके लक्षण गंभीर हो सकते हैं।

स्‍कार टिशू डेवलपमेंट

एंडोमेट्रिअल के अतिरिक्‍त उत्तक जो एंडोमेट्रिओसिस का कारण बन सकते हैं उसी तरह हार्मोन से प्रभावित हो सकते हैं, जैसे गर्भाशय अस्‍तर हार्मोन से प्रभावित होता है। हर महीने उत्तक बनते और समाप्‍त हो जाते हैं। जब ये उत्तक नष्‍ट होते हैं तो रक्‍त स्राव होता है जिससे अन्‍य उत्तकों पर निशान पड़ जाते हैं। ये स्‍कार टिशू श्रोणि क्षेत्र के अंगों और उत्तकों को एक दूसरे पर बढ़ने का कारण बनते हैं।

दर्द के लक्षण

श्रोणि में दर्द एंडोमेट्रिओसिस का सबसे सामान्‍य लक्षण है। मूत्र त्‍यागते, संभोग करते और मल त्‍याग करते समय तेज दर्द की शिकायत हो सकती है। मासिक धर्म शुरू होने से पहले भी महिला को तेज दर्द हो सकता है। श्रोणि दर्द और ऐंठन जैसी समस्‍यायें मासिक धर्म के दौरान काफी बढ़ सकती हैं। मासिक धर्म के दौरान होने वाला यह दर्द पेट और कमर की मांसपेशियों तक जा सकता है।

अनियमित रक्‍त स्राव

एंडोमेट्रिओसिस से महीने में कई बार रक्‍त स्राव हो सकता है। इसके साथ ही मासिक धर्म के दौरान होने वाला रक्‍त स्राव भी सामान्‍य से अधिक हो सकता है।

प्रजनन क्षमता समाप्‍त होना

एंडोमेट्रिओसिस का बुरा प्रभाव महिला की प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है। ये अतिरिक्‍त उत्तक पुरुष वीर्य को महिला गर्भाशय में जाने से रोक लेते हैं, इससे महिला गर्भधारण नहीं कर पाती। एक अनुमान के अनुसार हर तीसरा महिला को एंडोमे‍ट्रिओसिस हो सकता है।

ईलाज

इस रोग का इलाज हार्मोन दवाओं अथवा सर्जरी के जरिये हो सकता है। सर्जरी से अतिरिक्‍त उत्तकों को हटा दिया जाता है। हालांकि, करीब पचास फीसदी मामलों में सर्जरी के बाद एंडोमेट्रिओसिस के लक्षण लौट आते हैं। कुछ गंभीर मामलों में लंबे आराम के लिए हिस्‍टेरेक्‍टॉमी का सहारा भी लिया जाता है।

Thursday, January 7, 2016

वियाग्रा की तरह काम करनेवाली ये छह कुदरती चीजें Health

आप इन कुदरती चीजों की मदद से भी अपने यौन जीवन को बेहतर बना सकते हैं। ये कुदरती जरूर है लेकिन ये आपके सेक्स लाइफ को ये चीजें वियाग्रा की तरह ही मजेदार बना सकती है। जिनसेंग: चीन में इस के जड़ तीन रूप में पाये जाते हैं- एशियन जिनसेंग, साइबेरियन जिनसेंग, और अमेरिकन जिनसेंग। लंबे अरसे से चीनी लोग इसका प्रयोग यौन संबंधी समस्याओं के लिए प्रयोग करते आ रहे हैं। बाजार में जिनसेंग पेस्ट, पावडर और कैप्सूल के रूप में पाया जाता है। जानकार इसके 5 से 10 ग्राम रोजाना लेने की सलाह देते है। यह सेक्स जीवन में वियाग्रा की तरह रोल प्ले करने में सहायक होता है। हींग: हींग सेक्स को मजेदार बनाने के लिए बेहतर माना जाता है। जानकारों के मुताबिक 0.06 रोजाना हींग का सेवन 40 दिनों तक लगातार करने से कामोत्तेजना बढ़ाने में काफी मदद मिलती है। इस नुस्खे का सेवन आपके सेक्स लाइफ को बेहतर और मजेदार बनाने में सहायक साबित होता है। जीरा: मसाले सिर्फ आपके व्यंजन का स्वाद बढ़ाने का काम ही नहीं करते हैं बल्कि आपके यौन जीवन को और भी स्पाइसी बना देते हैं। उन्हीं मसालों में से एक होता है जीरा। जीरा में जिंक और मिनरल होता है जो शुक्राणु के संख्या को बढ़ाने में मदद करते हैं। यह पुरूषों के शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, संतानोत्पादक शक्ति के समस्या को समाधान करने में मदद करता है। रोज सुबह खाली पेट जीरा का काढ़ा एक कप उबलते हुए पानी में आधा छोटा चम्मच जीरा डालकर जीरा का काढ़ा बना सकते हैं पीने से इससे लाभ मिलता है। अदरक: अदरक एक ऐसा मसाला है जो यौन जीवन को सुधारने में भी मदद करता है। यह पुरुषों के शीघ्रपतन, और नपुंसकता की समस्या से राहत दिलाने में बहुत मदद करते हैं। रात को सोने के पहले एक हाफ बॉयल अंडे के साथ शहद और एक छोटा चम्मच अदरक का रस डालकर खाने से लाभ मिलता है। यह सेक्स जीवन को पूरी तरह से स्पाइसी बनाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ता है। इसको खाने से शरीर में एन्डोरफीन का निष्कासन होता है जो सेक्स जीवन को सुधारने में बहुत मदद करता है। अदरक का सेवन करने से सेक्स के दौरान उत्तेजना में बढ़ोतरी होती है। रात में डिनर के वक्त इसे खाया जाए या फिर अदरक वाली चाय का सेवन किया जाना चाहिए। इसके सेवन से दिल की धड़कन बढ़ती है, खून का प्रवाह तेज होता है जिससे उत्तेजना बढ़ती है। लहसुन: जानकारों के मुताबिक लहसुन में कोमोत्तेजक गुण पाए जाते हैं, जो रक्त संचार और और यौन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। लहसुन में एलीकीन होता है जो कि सेक्सी भागों में खून के प्रवाह को बढ़ाता है। कामेच्छा बढ़ाने के लिए लहसुन के कैप्सूल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लहसुन की दो-तीन कलियां कच्चा चबाकर खाने से सेक्स पावर बढ़ता है।