Sunday, March 6, 2016

स्तनों की कसावट के घरेलू उपाय

स्तनों की देखभाल
कभी-कभी स्तनों में हलकी सूजन और कठोरता आ जाती है। मासिक धर्म के दिनों में प्रायः यह व्याधि हुआ करती है, जो मासिक ऋतु स्त्राव बन्द होते ही ठीक हो जाती है। ऐसी स्थिति में गर्म पानी से नैपकिन गीला करके स्तनों को सेकना चाहिए।

गर्भावस्था के दिनों में स्तनों को भली प्रकार धोना, अच्छे साबुन का प्रयोग करना, चुचुकों को साफ रखना यानी चुचुक बैठे हुए और ढीले हों तो उन्हें आहिस्ता से अंगुलियों से पकड़कर खींचना व मालिश द्वारा उन्नत व पर्याप्त उठे हुए बनाना चाहिए, ताकि नवजात शिशु के मुंह में भलीभांति दिए जा सकें। यदि हाथों के सहयोग से यह सम्भव न हो सके तो 'ब्रेस्ट पम्प' के प्रयोग से चुचुकों को उन्नत और
उठे हुए बनाया जा सकता है।

कभी-कभी चुचुकों में कटाव, शोथ या अलसर जैसी व्याधि हो जाती है, इसके लिए थोड़ा सा शुद्ध घी (गाय के दूध का) लें, सुहागा फुलाकर पीसकर इसमें मिला दें। माचिस की सींक की नोक के बराबर गंधक भी मिला लें। इन तीनों को अच्छी तरह मिलाकर मल्हम जैसा कर लें और स्तनों के चुचुक पर दिन में 3-4 बार लगाएं। ताजे मक्खन में थोड़ा सा कपूर मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।

लाभकारी उपाय :
फिटकरी 20 ग्राम, गैलिक एसिड 30 ग्राम, एसिड आफ लेड 30 ग्राम, तीनों को थोड़े से पानी में घोलकर स्तनों पर लेप करें और एक घंटे बाद शीतल जल से धो डालें। लगातार एक माह तक यदि यह प्रयोग किया गया तो 45 वर्ष की नारी के स्तन भी नवयौवना के स्तनों के समान पुष्ट हो जाएंगे।

गम्भारी की छाल 100 ग्राम व अनार के छिलके सुखाकर कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। दोनों चूर्ण 1-1 चम्मच लेकर जैतून के इतने तेल में मिलाएं कि लेप गाढ़ा बन जाए। इस लेप को स्तनों पर लगाकर अंगुलियों से हलकी-हलकी मालिश करें। आधा घंटे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो डालें। जो भी परिणाम मिले, उसकी सूचना कृपया हमें जरूर दें।

छोटी कटेरी नामक वनस्पति की जड़ व अनार की जड़ को पानी के साथ घिसकर गाढ़ा लेप करें। इस लेप को स्तनों पर लगाने से कुछ दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।

बरगद के पेड़ की जटा के बारीक नरम रेशों को पीसकर स्त्रियां अपने स्तनों पर लेप करें तो स्तनों का ढीलापन दूर होता है और कठोरता आती है।

इन्ही के साथ सर्वोत्तम यह भी रहेगा कि रात को सोने से पहले किसी भी तेल की 10 मिनट तक मालिश करें। या तो स्वयं करें या अपने पति से कराएं, मालिश के दिनों में गेप न करें, रेगुलर करें व दो माह बाद चमत्कार देखें। स्तनों की मालिश हमेशा नीचे से ऊपर ही करें।

स्तनों की शिथिलता दूर करने के लिए एरण्ड के पत्तों को सिरके में पीसकर स्तनों पर गाढ़ा लेप करने से कुछ ही दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। कुछ व्यायाम भी हैं, जो वक्षस्थल के सौन्दर्य और आकार को बनाए रखते हैं।

महिलाओं के शरीर में स्तनों का विशिष्ट स्थान है, इस दृष्टि से इनकी देखभाल और सुरक्षा करना बहुत जरूरी है। आज हर युवती चाहती है कि उसके स्तन उन्नत, सुडौल व विकसित दिखें। चेहरे के अलावा स्त्रियों के उन्नत स्तन ही आकर्षण का केन्द्र होते हैं।

जब किसी कारण किसी युवती के वक्षस्थल का समुचित विकास नहीं हो पाता तो वह चिंतित और दुःखी हो उठती है, प्रायः हमउम्र सहेलियों एवं परिवार की महिलाओं के सामने लज्जा का अनुभव करती है। उसे यह भी संकोच और भय होता है कि विवाह के बाद पति के सामने उसकी क्या स्थिति होगी।

शारीरिक सौंदर्य एवं देहयष्टि की दृष्टि से स्त्री शरीर में सुन्दर, स्वस्थ और सुडौल स्तन शारीरिक आकर्षण के प्रमुख अंग तो हैं ही, नवजात शिशु को पोषक, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक आहार उपलब्ध कराने वाले एकमात्र अंग भी हैं। कुमारी अथवा विवाहित युवतियों के लिए इन अंगों का स्वस्थ, पुष्ट और सुडौल होना आवश्यक माना जाता है।

स्त्री के शरीर में पुष्ट, उन्नत और सुडौल स्तन जहां उसके अच्छे स्वास्थ्य के सूचक होते हैं, वहीं नारित्व की गरिमा और सौन्दर्य वृद्धि करने वाले प्रमुख अंग भी होते हैं। अविकसित, सूखे हुए और छोटे स्तन भद्दे लगते हैं, वहीं ज्यादा बड़े-ढीले और बेडौल स्तन भी स्त्री के व्यक्तित्व और सौन्दर्य को नष्ट कर देते हैं। स्तनों का सुडौल, पुष्ट और उन्नत रहना स्त्री के अच्छे स्वास्थ्य और

स्वस्थ शरीर पर ही निर्भर है। घरेलू कामकाज और खासकर हाथों से परिश्रम करने के काम अवश्य करना चाहिए।

स्तनों का उचित विकास न होने के पीछे शारीरिक स्थिति भी एक कारण होती है। यदि शरीर बहुत दुबला-पतला हो, गर्भाशय में विकार हो, मासिक धर्म अनियमित हो तो युवती के स्तन अविकसित और छोटे आकार वाले रहेंगे, पुष्ट और सुडौल नही हो पाएंगे। एक कारण मानसिक भी होता है, लगातार चिंता, तनाव, शोक, भय और कुंठा से ग्रस्त रहने वाली, स्वभाव से निराश, नीरस और उदासीन प्रवृत्ति की युवती के भी स्तन अविकसित ही रहेंगे।

यदि वंशानुगत शारीरिक दुबलापन न हो तो उचित आहार और हलके व्यायाम से शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाया जा सकता है। जब पूरा शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाएगा तो स्तन भी विकसित और पुष्ट हो जाएंगे। शरीर बहुत ज्यादा दुबला-पतला, चेहरा पिचका हुआ और आंखें धंसी हुई होंगी तो यही हालत स्तनों की भी होता स्वाभाविक है।

इसके अलावा युवतियों की एक समस्या और है- बेडौल, ज्यादा बड़े आकार के व शिथिल स्तन होना। इसके कारण हैं शरीर का मोटा होना, चर्बी ज्यादा होना, ज्यादा मात्रा में भोजन करना, मीठे व गरिष्ठ पदार्थों का सेवन, सुबह ज्यादा देर तक सोना, दिन में अधिक देर तक सोना आदि। मानसिक कारणों में एक कारण और है- कामुक विचारों का चिंतन करना, अश्लील साहित्य या चित्रों का अवलोकन, हमउम्र सहेलियों से कामुकतापूर्ण बातें, किसी बहाने से अपने स्तन सहलवाना या मर्दन करवाना, किसी बहाने से स्तनों को छूने के पुरुषों को ज्यादा मौके देना आदि।

सावधानियां
किशोरावस्था में जब स्तनों का आकार बढ़ रहा हो, तब तंग अंगिया या ब्रेसरी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि उचित आकार की और तनिक ढीली अंगिया पहनना चाहिए। बिना अंगिया पहने नहीं रहना चाहिए वरना स्तन बेडौल और ढीले हो जाएंगे। ज्यादा तंग अंगिया पहनने से स्तनों के स्वाभाविक विकास में बाधा पड़ती है।

भलीभांति शारीरिक परिश्रम करने वाली, हाथों से काम करने वाली किशोर युवतियों के अंग-प्रत्यंगों का उचित विकास होता है और स्तन बहुत सुडौल और पुष्ट हो जाते हैं। प्रायः घरेलू काम जैसे कपड़े धोना, छाछ बिलौना, कुएं से पानी खींचना, बर्तन मांजना, झाड़ू-पोछा लगाना और चक्की पीसना ऐसे ही व्यायाम हैं, जो स्त्री के शरीर के सब अवयवों को स्वस्थ और सुडौल रखते हैं।

बच्चे को जन्म देते ही स्तनों का प्रयोग शुरू हो जाता है। स्तन के चुचुकों को भलीभांति अच्छे साबुन-पानी से धोकर साफ करके ही शिशु के मुंह में देना चाहिए। यदि बच्चे को दूध पिलाने के बाद भी स्तनों में दूध भरा रहे तो इस स्थिति में हाथ से या 'ब्रेस्ट पम्प' से, दूध निकाल देना चाहिए। सब प्रयत्न करने पर भी स्तन में कोई व्याधि, सूजन या पीड़ा हो तो शीघ्र ही किसी कुशल स्त्री चिकित्सक को दिखा देना चाहिए।

किसी भी स्थिति में स्तनों पर आघात नहीं लगने देना चाहिए। स्तन में कभी कोई छोटी सी गांठ हो जाए जो कठोर हो और स्तन से दूध की जगह खून आने लगे तो यह स्तन के कैंसर हो सकने की चेतावनी हो सकती है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना जरूरी है।
आयुर्वेद ने स्तनों की उत्तमता को यूं कहा है- स्तन अधिक ऊंचे न हों, अधिक लम्बे न हों, अधिक कृश (मांसरहित) न हों, अधिक मोटे न हों। स्तनों के चुचुक (निप्पल) उचित रूप से ऊंचे उठे हुए हों, ताकि बच्चा भलीभांति मुंह में लेकर सुखपूर्वक दूध पी सके, ऐसे स्तन उत्तम (स्तन सम्पत्‌) माने गए हैं।

नारी शरीर में स्तनों का विकास किशोर अवस्था के शुरू होते ही, 12-13 वर्ष की आयु होते ही होने लगता है और 16 से 18 वर्ष की आयु तक इनका विकास होता रहता है। गर्भ स्थापना होने की स्थिति में इनका विकास तेजी से होता है, ताकि बालक का जन्म होते ही, उसे इनसे दूध मिल सके। स्तनों का यही प्रमुख एवं महत्वपूर्ण उपयोग है।

2 comments:

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